हैं और हमारे देखने योग्य हैं वे सब कई छोटे२ टुकड़ों से बनी हुई हैं। इन टुकड़ों के भी कई टुकड़े हैं। इस तरह एक२ टुकड़े को तोड़ते२ अन्त में जाकर ऐसे टुकड़े होंगे जिनके टुकड़ों को हम नहीं देख सकते। ऐसे टुकड़े का नमूना सूर्य की किरणों में जो छोटे२ कण देख पड़ते हैं उन्हें बतलाया गया है। इसके भी टुकड़े अवश्य होंगे क्योंकि मैं इसे देख सकता हूं। परन्तु इन टुकड़ों को मैं देख नहीं सकता। इसलिये इन टुकड़ों को अणु माना है। इस अणु के भी टुकड़े हैं, क्योंकि अगर इनके टुकड़े न होते तो इनसे बना हुआ पदार्थ देख नहीं पड़ता। इसी अन्तिम टुकड़े को 'परमाणु' कहते हैं। ऐसे दो परमाणुओं के मिलने से द्वयणुक, तीन द्वयणुकों के मिलने से एक त्रसरेणु, इस क्रम से सब वस्तु उत्पन्न होती हैं।
टुकड़ा करने का अन्त कहीं न कहीं अवश्य मानना होगा। नहीं तो संसार में जितनी चीजें हैं सब ही में अनन्त टुकड़े मानने पड़ेंगे। सभी वस्तु एक परिमाण की होंगी अर्थात् जितने अनन्त टुकड़े, पृथ्वी के खण्ड, एक छोटे से मिट्टी के ढेले में, होंगे वैसे ही अनन्त टुकड़े पहाड़ में भी होंगे। परन्तु यदि टुकड़ों का विराम परमाणु पर जाकर मान लिया जाय तो ऐसा नहीं होगा। छोटी चीज में थोड़े परमाणु होंगे बड़ी चीज में अधिक। इस तरह परमाणु भेद सिद्ध हो जाता है।
वैशेषिकों ने चार भूतों के चार तरह के परमाणु माने हैं, पृथ्वी परमाणु, जल परमाणु, तेज परमाणु, वायु परमाणु। पांचवें भूत आकाश के अवयव या टुकड़े नहीं हैं। वह निरवयव स्थिर भूत केवल शब्द का आधाररूप माना गया है। इन सब परमाणुओं के खास खास गुण हैं।
परमाणुओं का संयोग तीन प्रकार का होता है। (१) शुद्ध—एक भौतिक वस्तु की उत्पत्ति में अनवरत चलते हुए परमाणु दो दो कर के संयुक्त होकर द्वयणुक हो जाते हैं। फिर ये द्वयणुक तीन, चार, पांच, छ इस क्रम से इकट्ठे हो कर नाना वस्तु बन जाते हैं। प्राचीन वैशेषिकों का यही मत है। परन्तु कुछ लोगों का ऐसा मत है कि दो परमाणुओं के मिलने से द्वयणुक, तीन परमाणुओं के मिलने