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पृष्ठ:वैशेषिक दर्शन.djvu/४३

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वैशेषिक दर्शन।

और नैमित्तिक, किसी कारण से उत्पन्न। स्वाभाविक द्रवत्व केवल जल ही में है नैमित्तिक द्रवत्व पृथिवी और जल में है।

बर्फ का टुकड़ा यद्यपि जल का विकार है इसमें स्वाभाविक द्रवत्व है परंतु जल परमाणु अग्नि के संयोग से ऐसे परस्पर संयुक्त हो जाते हैं कि इस संयोग से जलपरमाणु का स्वाभाविक द्रवत्व तब तक रुक जाता है।

पृथिवी और तेज में अग्नि संयोग से द्रवत्व उत्पन्न होता है। द्रवत्व की उत्पत्ति रूप की तरह होती है। अर्थात् किसी पार्थिव वस्तु में–लाह में–जब द्रवत्व उत्पन्न होगा तब अग्नि संयोग द्वारा उस वस्तु का नाश होगा फिर उस वस्तु के परमाणुओं में द्रवत्व उत्पन्न होगा–फिर द्रवत्व सहित परमाणुओं का संयोग होकर–फिर से द्रवत्वगुणवाली वस्तु उत्पन्न हो जायगी।

स्नेह (२०)

स्नेह–चिकनाहट–जल का विशेष गुण है। यह वही गुण है जिसके द्वारा वस्तुओं का संग्रह (कई पिंडों का एक साथ मिलकर एक पिंड बन जाना), सफाई और कोमलता उत्पन्न होते हैं। यह भी परमाणुओं में नित्य और स्थूल वस्तुओं में अनित्य है—आश्रयनाश से इस का भी नाश होता है।

संस्कार (२१)

संस्कार तीन प्रकार का होता है (१) वेग–(२) भावना–(३) स्थितिस्थापक।

(१) इनमें से वेग–'तेजी'–पांचो मूर्त द्रव्यों में–पृथिवी जल वायु अग्नि और मन–में खास खास कारणों से उत्पन्न होता है। इससे द्रव्यों के संयोग का नाश होता है।

(२) अनुभव–प्रत्यक्षादि–होने के बाद जो उन अनुभवों का कुछ अंश चित्त में रह जाता है–उसी के द्वारा उन अनुभूत वस्तुओं का स्मरण होता है और ये फिर पहिचाने जाते हैं। उसी को 'भावना' कहते हैं–उसका 'वासना' भी दूसरा नाम कहा गया है। सामान्यतः 'संस्कार' नाम से भी यही संस्कार प्रसिद्ध है। यह संस्कार केवल आत्मा में रहता है। बार बार जिस वस्तु का अनुभव होता है उससे उस वस्तु की भावना चित्त में बन जाती है। जिस