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पृष्ठ:वैशेषिक दर्शन.djvu/४४

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धर्म-अधर्म।

अनुभव का चित्त पर बड़ा असर पड़ता है उसकी भी भावना दृढ़ उत्पन्न होती है। जिस वस्तु के देखने की बड़ी अभिलाषा हो उस वस्तु को जब लोग देखलेते हैं तो इस अनुभव से भी दृढ़ वासना उत्पन्न होती है।

(३) स्थिति स्थापक संस्कार उस लपक (लचक) को कहते हैं जिसके द्वारा रबड़ का टुकड़ा खींचे जाने के बाद फिर पुराने स्वरूप पर आजाता है। यह संस्कार उन्हीं द्रव्यों में रहता है जिन का स्पर्श होता है—पृथिवी जल वायु और अग्नि में। इसकी नित्यता अनित्यता गुरुत्व की तरह होती है।

अदृष्ट-धर्म-अधर्म (२२)

जो काम आदमी करता है वह भला या बुरा होता है। और हर एक काम के करने से उस आदमी के चित्त पर एक तरह का असर पड़ता है—इसी असर को 'अदृष्ट' कहा है क्योंकि यह देखा नहीं जा सकता। अच्छा काम करने से जो असर या संस्कार पैदा होता है उसको 'धर्म' कहते हैं और बुरे काम के असर को 'अधर्म'। ये दोनों मनुष्य के आत्मा के गुण हैं। क्योंकि कर्मों का असर शरीर पर नहीं रहता—शरीर नष्ट हो जाने पर धर्म अधर्म का फल भुगता जाता है। इससे आत्माही के ये धर्म-अधर्म गुण माने गए हैं।

आदमी का प्रिय-हित सय वस्तु और मोक्ष धर्म से सिद्ध होता है। चरम ज्ञान से और चरम सुख से धर्म का नाश होता है, अर्थात् चरम सुख जब मिल गया तब सब धर्म का मानो फल प्राप्त हो चुका फिर और धर्म बाकी नहीं रह जाता। इसी तरह जब तक सुख उत्पन्न करनेवाले धर्म का कुछ भी लेश बाकी रह जायगा तब तक मोक्ष नहीं होगा। इससे जब मोक्ष होगा तब धर्म बाकी नहीं रहेगा।

धर्म के साधन भिन्न भिन्न जाति भिन्न भिन्न आश्रमों के लिये पृथक पृथक कहे गए हैं। श्रौतस्मृति में विहित–करने योग्य उपभोग के योग्य प्राप्त करने के योग्य–जितने द्रव्य गुण और कर्म हैं ये सब धर्म के साधन होते हैं। धर्म में श्रद्धा, अहिंसा, प्राणियों