पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/११८

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सुदा को साहस नहीं हुआ कि उस घरसे और स्नेह बढ़ाए । अपालाकी एक सखीसे वह मिला। उसने अपालाके उन रंगीन नए वस्त्रों-अन्तरवासक, उत्तरीय (चादर) कंचुक और उष्णीषको सामने रख अखिमैं आँसू भरकर कहा-मेरी सखीनै इन वस्त्रको अन्तिम समय में पहना था और उसके ओरों पर अन्तिम शब्द थे: “मैंने सुदास्को वचन दिया है, बहन, कि मैं तेरे लिए मद्रपुर में प्रतीक्षा करूंगी।" | सुदास्ने उन कपड़ों को उठाकर अपनी छाती और आँखोंसे लगाया। उनसे अपालाके शरीरको सुगन्धिं आ रही थी । *

  • यह आनसे १४४ पीढ़ी पहनेके आर्य-जनकी कहानी है। इसी समय पुरातनतम ऋषि वशिष्ट, विश्वामित्र, भारद्वाज ऋग्वेद मन्त्रोंकी रचना कर रहे थे, इसी समय आर्य-पुरोहितकी सहायताले कुरु-पंचालाके आर्य-समान्तोंने जनताके अधिकारपर अन्तिम और सबसे ज़बर्दस्त प्रहार किया।