________________
' नागदत १६३ कोमल शरीर पर मणिमुक्ताके मूषण केवल भार मालूम होते थे। इन दोनोंके अतिरिक्त कमरे में कितनी ही और सुन्दरियाँ खड़ी थी, जिनके चेहरे और विनीत भावको देखनेसे वैद्यको समझनेमे देर नहीं हुई कि यह क्षत्रपके अंतःपुरकी परिचारिकायें हैं। पुरुष–जो कि क्षत्रप ही थाने वैद्यको एक बार शिरसे पैर तक निहारा, किन्तु उसकी दृष्टिको उसके नीले नेत्रोंने अपनी ओर खीच लिया, उसे यह समझने में देर न लगी, कि यदि मैं अपने कपड़ों को इसी समय पहना दें तो यह पशुपुरी ( पर्सेपोली) के सुन्दरतम तरुण में गिना जायेगा । क्षत्रपने विनीत स्वरमे कहा "आप तक्षशिला वैद्य हैं ? हाँ, महा क्षत्रप | | "मैरी स्त्री बहुत बीमार है। कलसे उसकी अवस्था वहुत खराव हो गई है। मेरे अपने दो वैद्योंकी दवाओंका कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा है ।। "मैं महा क्षत्रपकी पत्नीको देखनेके बाद आपके वैद्योंमें बातचीत करना चाहूंगा ।। वह यहाँ हाजिर रहेंगे । अच्छा तो भीतर चलें ।” श्वेत भीत जैसे ही श्वेत पर्दे को हटाया गया, वहाँ भीतर जानेका द्वार था, क्षत्रप और षोडशी आगे आगे चली, उनके पीछे वैद्य था । भीतर हाथी दाँतके पाका एक पलंग बिछा था, जिस पर फेन सहर श्वेत कमल विस्तरे पर रोगिणी सोई हुई थी, उसका शरीर श्वेत अदली-मृग ( समूर ) के चर्म वाले प्रावरणसे ढूंका था, और सिर्फ चिबुकके ऊपरका भाग भर खुला था। क्षत्रपको आते देख परिचारकाये अलग खड़ी हो गईं। वैद्यने नजदीकसे जाकर देखा, क्षत्रपानीका चेहरा उस घोडशीसे हूबहू मिलता था, किन्तु उस तरुण सौन्दर्यकी जगह यहाँ प्रौढ़ावस्थाका प्रभाव और उस पर चिर रोगके झंझावातका असर था । वह लाल ओठ अब पीले थे, उसके मासल कपोल सूख कर नीचे पॅस गये हाँ भीतर जानेक आगे चली, श्वेत कम दाँतके पावकागि