पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१६६

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गदत्त १६५ कि मै अच्छी हो जाऊँगी, मैं अनुभव कर रही हूँ मुझमें शक्ति आ रही है। क्षत्रपनै कहा-“यही बात मुझसे यह हिन्दू वैद्य भी कह रहे थे।" चेहरेको और उज्ज्वल करते हुए क्षेत्रपानीने कहा--*हिन्दू वैद्य जानते हैं, मेरी बीमारीको मेरी बीमारी खतम हो चुकी है, क्यों वैद्य !! "हाँ, बीमारी खतम हो गई, किन्तु महाक्षत्रपानीको थोड़ा सा विश्राम करना पड़ेगा। मैं यही सोच रहा हूँ, कि कितनी जल्दी आपको पर्शपुरी जाने लायक कर दिया जाय । मेरे पास अद्भुत रसायन है, हिन्दुओंके रसायनको मैं दे रहा हूँ। थोड़ा थोड़ा द्राक्षा और दाखिमके रसको पीना होगा ।" “वैद्य ! तुम रोगको पहचानते हो, दूसरे तो गदहे हैं। तुम जैसा कहोगे, वैसा ही करूंगी। रोशना । षोडशी सामने खड़ी होकर बोलीis » । बेटी ! तेरी आँखे गीली हैं, वे वैद्य मुझे मार डालते, किन्तु अब चिन्ता नहीं । हिन्दू वैद्यको अहुर-मड़दाने मैजा है, इन्हें तकलीफ न होने देना । मुझे जो खाने-पीनैको वैद्य कहें, तु अपने हायसे देना।" वैद्य रोशनाको कुछ बातें बतलाकर बाहर निकला | क्षत्रपका चेहरा खिला हुआ था। वैद्यनै कुछ दवाओंको भोजपत्रके टुकड़ों में बाँधकर, क्षत्रपके हवाले कर अपनी पान्थशालामें जाना चाहा, तो क्षत्रपने कहा'तुमको हमारे साथ रहना चाहिए । *किन्तु, मैं दर्बारमें रहनेका तरीका नहीं जानता ।” "तो भी मनुष्यकै रहनेका तरीका तुम अच्छी तरह जानते हो।तरीका जाति जातिका अलग होता है।" । "मेरी रहन-सहनसे आपके परिचारकोंको कष्ट होगा । • *मैं एक बिल्कुल अलग कमरा, पास ही दे रहा हूँ। तुम्हारे पास रहनेसे हमें सन्तोष रहेगा।