पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/१९७

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१६६ बोलणासै गंगा जरूर मिलना चाहिए। वह तुम्हें और गंभीर बातें बतलायँगेबौद्धधर्मके बारेमें ही नहीं, थवन-दर्शनके बारेमें भी । 'यवन भी दार्शनिक हुए हैं ? ‘अनेक महान् दार्शनिक, जिनके बारेमें भदन्त धर्म-रक्षित तुम्हें बतलायेंगे । किन्तु, प्रिय, कहीं बौद्ध दर्शन सुन प्रभासे वैराग्य न कर लेना ।कह प्रमाने अपनी बाँहोंमें अश्वघोषको बाँध लिया, मानो उसे कोई छीनै लिए जा रहा हो। कुछ बातें तो कालकारामकी मुझे भी बहुत आकर्षक भालूम हुई। खयाल आता था, यदि हमारा सारा देश कालकाराम-जैसा होता है । प्रभाने बैठकर कहा–'नहीं, प्रिय ! कहीं तुम मुझे छोड़कर कालकाराममें न चले जाना। “तुम्हें छोड़ जाना बीते-जी ! असम्भव प्रिये ! मैं कह रहा था वहाँकी मैद-भाव-शून्यताके बारेमे । देखो, वहाँ यवन धर्मरक्षित, पार्शव ( पर्सियन ) सुमन जैसे देश-देशान्तरों के विद्वान् भिक्षु रहते हैं, और साथ ही हमारे देशके ब्राह्मणसे चण्डाल तक सारे कुलोंके भितु एक साथ रहते, एक साथ खाते-पीते और एक साथ ज्ञान अर्जन करते हैं। कालकारामके उन बूढ़े काले-काले मिलुका क्या नाम है ? ‘महास्थविर धर्मसैन । वह साकेतके सभी विहारोंके भिक्षुओंके प्रधान हैं ।। 'सुना है, उनका जन्म-कुल चण्डाल है। और उनके सामने मेरे अपने चचा भिक्षु शुभगुप्त उकडं बैठ प्रणाम करते हैं। लयाल करो, कहाँ शुभगुप्त एक समृद्ध ओत्रिय ब्राह्मण-कुलके विद्वान् पुत्र और कहाँ चण्डाल-पुत्र धर्मसेन ! 'किन्तु महास्थविर धर्मसेन भी बड़े विद्वान् हैं।' 'मैं ब्राह्मणोंके धर्मकी दृष्टिसे कहता हूँ, प्रभा ! क्या उनका बस चलता, तो धर्मसेन मनुष्य भी बन सकते थे, देवता बनकर पूजित होनेकी तो बात ही और है।