पृष्ठ:वोल्गा से गंगा.pdf/९९

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वोल्गासै गंगा फिर एक कानसे दूसरे कानमें चलकर बात बड़े वेगसे फैलने लगती है। वरुण कवि भी था, उसने पति-वियोगिनी आर्य महिलाओं की ओरसे असुर-कन्याको अभिशाप, तथा सुमित्रके विलासपूर्ण स्वार्थमय जीवन की कितनी ही सुन्दर गीतें बनाई, जो दावानलकी भाँति सारे सौवीरके आर्य-प्रमोंमें गाई जाने लगीं । आखिरमें उसने आर्य-पक्षियोंको थोड़ाथौड़ा करके उनके पतियों के पास भेजा, जिन्हें तिरस्कारकर लौटाने का परिणाम और भी बुरा साबित हुआ। सुमित्रको लौटनेके लिये कहनेपर भी जब वह आनेके लिये नहीं राजी हुआ तो उसके स्थानपर वरुणको सेनानायक नियुक्तकर भारी आर्य-सेनाके साथ असुरपुरके लिये रवाना किया; वरुणको सामने आया समझ-सुमित्रके सैनिकों में फूट पड़ गई, और कितनोंने अपने अनार्य-व्यवहारके लिए सचमुच पश्चात्ताप किया। बाकी बची हुई सेनाकी मददसे लड़नेमें सुमित्र को सफलताकी आशा न थी, इसीलिये अन्तमें उसने वरुणको नगर समर्पितकर सौवीरपुर लौटनेकी इच्छा प्रकट की । इस प्रकार आर्य जन पहिली भीषण परीक्षामें सफल हुए। वरुणने असुरोको नहीं छेड़ा, क्योंकि अब वह असे नहीं लड़रहे थे। हाँ, आयको असुरोंके, प्रभावसे अलग रखनेके लिए उसने एक अलग आर्यपुर बसाया और ऋषि अंगिराकी बतलाई कितनी ही बातोंको काममें लाना शुरू किया |

  • आजसे १५२, पीढी पहिलेको आर्य-कहानी ।