पृष्ठ:शशांक.djvu/१०९

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तेरहवाँ परिच्छेद राजद्वार सम्राट महासेनगुप्त तीसरे पहर सभामंडप में बैठे हैं। सम्राट के सामने नागरिक लोग अपना-अपना दुःख निवेदन कर रहे हैं। विशाल सभामंडप के चारों ओर अपने-अपने आसनों पर प्रधान प्रधान राज- पुरुष और अमात्य बैठे हैं। प्रधान-प्रधान नागरिक और भूस्वामी उनके पीछे बैठे हैं। सबके पीछे नगर के साधारण नागरिक दल के दल खड़े हैं। सम्राट का मुख प्रसन्न नहीं है। वे चिंता में मग्न जान पड़ते हैं । स्थाण्वीश्वर राज के आगमन के पीछे उनके मुँह पर और भी अधिक चिंता छाई रहती थी। सिंहासन के दहने, वेदी के नीचे गुप्त साम्राज्य के प्रधान अमात्य हृषीकेश शर्मा कुशासन पर बैठे हैं। उनके पीछे प्रधान विचारपति महाधर्माध्यक्ष नारायणशा सुखासन पर विराजमान हैं। उनके पीछे महादंडनायक रविगुप्त, प्रधान सेनापति महाबलाध्यक्ष हरिगुप्त, नौसेना के अध्यक्ष महानायक रामगुप्त इत्यादि प्रधान राजपुरुष ये सब लोग अब वृद्ध हो गए हैं, राजसेवा में ही इनके बाल पके हैं। ये सम्राट के वंश के ही हैं। हिंहासन की दूसरी ओर नवीन

  • महाधर्माध्यक्ष = प्रधान विचारपति (Chief Justice )
  • महादडनायक = प्रधान दंडविधानकर्ता । (Chief Magistrate )
  • महाबलाध्यक्ष प्रधान सेनापति ।