पृष्ठ:शशांक.djvu/११३

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(६३) पड़े। राम गुप्त उन्हें देख खड़े हो गए। क्षण भर में वे पास आ गये और साम्राज्य के नौवलाध्यक्ष महानायक रामगुप्त दीन हीन वृद्ध के चरणों पर लोट गए । सभा में एकत्र नागरिकों ने कुछ न समझकर जयध्वनि की। दंडधर उन्हें रोक न सके । सम्राट् व्यस्त होकर उठ खड़े हुए, यह देख सभा के सब लोग खड़े हो गये । नए सभासदों और राजपुरुषों ने चकित होकर देखा कि एक लंबे डीलडौल का वृद्ध युवराक शशांक के कंधे का सहारा लिए चला आ रहा है और नौवलाध्यक्ष महानायक रामगुप्त. अनुचर के समान उसके पीछे पीछे आ रहे हैं ! इधर हृषीकेश शर्मा बात ठीक ठीक समझ में न आने से बहुत चिड़- चिड़ा रहे थे। इतने में वृद्ध को उन्होंने सामने देखा और वे लड़- खड़ाते हुए वेदी के सामने आ खड़े हुए और कहने लगे "कौन कहता था कि यशोधवलदेव मर गये?" वृद्ध उन्हें प्रणाम कर हो रहे थे कि उन्होंने झपटकर उन्हें गले से लगा लिया। नागरिकों ने फिर जयध्वनि की । सब ने चकित होकर देखा कि वृद्ध सम्राट महासेनगुप्त गडमगाते हुए पैर रख रखकर वेदी के नीचे उतर रहे हैं । पिता को देख युवराज ने दूर ही से प्रणाम किया, किंतु सम्राट ने न देखा । छत्र और चँवरवाले सम्राट के पीछे-पीछे उतर रहे थे, पर महावलाध्यक्ष हरिगुप्त ने उन्हें सकेत से रोक दिया । सम्राट को देखकर हृषीकेश और रामगुप्त एक किनारे हट गए। वृद्ध यशोधवलदेव अभिवादन के लिए कोश से तल- वार खींच ही रहे थे कि सम्राट् ने दोनों हाथ फैलाकर उन्हें हृदय से लगा लिया। यह देख राजकर्मचारी, सभासद और नागरिक सबके सब उन्मत्त के समान बार-बार जयध्वनि करने लगे। काँपते हुए स्वर में सम्राट ने कहा "सचमुच तुम यशोधवल ही हो?" वृद्ध चुपचाप आँसू

  • नौवलाध्यक्ष = नावों पर की सेना का नायक ।