(६४ ) बहा रहे थे । हृषीकेश शर्मा और रामगुप्त की आँखों से भी आँसुओं की धारा बह रही थी। हरिगुप्त चुपचाप जाकर सम्राट के पीछे खड़े थे। युवराज शशांक भी कुछ दूर पर खड़े एकटक यह नया सम्मिलन देख रहे थे। सम्राट महासेन यशोधवल को लिए वेदी की ओर बढ़े। युवराज, हृषीकेश शर्मा, रामगुप्त, हरिगुप्त और नारायण शर्मा प्रभृति प्रधान राजपुरुष उनके पीछे-पीछे चले। सम्राट ने जब वेदी की सीढ़ी पर पैर रखा तब वृद्ध यशोधवल नीचे ही खड़े रह गए और बोले "महा- राजाधिराज अब आसन ग्रहण करें और मैं अपना कर्त्तव्य करूँ।" सम्राटे ने बहुत चाहा पर वे वेदी के ऊपर नहीं गए । सम्राट के सिंहासन पर सुशोभित हो जाने पर वृद्ध ने हाथ थामकर युवराज को वेदी पर चढ़ाया। युवराज भी अपने सिंहासन पर बैठ गए। तब वृद्ध ने वेदी के सामने खड़े होकर कोश से तलवार खींची और अपने मस्तक से लगा कर सम्राट के चरणों के नीचे रख दी। जयध्वनि से फिर सभामंडप गूंज उठा। सम्राट ने तलवार उठाकर अपने मस्तक से लगाई और वृद्ध के हाथ में फिर दे दी। वृद्ध तलवार लेकर युवराज की ओर देख बोले “महाकुमार ! मैं सबसे पिछली बार जब सम्राट् की सेवा में उप- स्थित हुआ था तब भी यह सिंहासन खाली था। यशोधवल ने बहुत दिनों से साम्राज्य के महाकुमार का अभिवादन नहीं किया है। वाल्य- काल में जब आपके पिताजी महाकुमार थे तब एक बार इस सिंहासन के सामने अभिवादन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था । आज वृद्धावस्था में फिर प्राप्त हुआ है ।" इतना कहकर वृद्ध ने तलवार मस्तक-से लगाकर युवराज शशांक के पैरों तले रख दी । युवराज ने तलवार उठा ली और वेदी के नीचे उतरकर वृद्ध को प्रणाम किया। चारों ओर सबके मुँह से 'जय जय' को ध्वनि निकल पड़ी। चिंता से विह्वल सम्राट का मुख- मंडल भी खिल उठा और वे भी 'धन्य धन्य बोल उठे। वृद्ध यशो-
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