पृष्ठ:शशांक.djvu/११९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

"चित्रा! तू दोनों फुलवारी में जाकर अदृश्य हो गए । शशांक बोले "चित्रा! चित्रा कुछ न बोली, मुँह फेरकर खड़ी हो गई। युवराज उसका हाथ थामा, उसने झटक दिया। शशांक ने फिर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा "क्या हुआ, बोलती क्यों नहीं ?" चित्रा मुँह मनाया। उसने अंत में कह दिया कि लतिका को.फूल तोड़कर देने को कहते थे, इसी से मुझे बुरा लगा । शशांक ने कहा "लतिका चार दिन के लिए हमारे घर आई है। माँ ने उसके साथ खेलने के लिए मुझसे कहा है। यदि मैं न खेलूँगा तो वे चिढ़ेगी" | चित्रा की आकृति कुछ गंभीर हो गई। वह बोली “तुम उसे फूल तोड़कर क्यों दोगे ?' इस "क्यों' का क्या उत्तर था ? शशांक ने उसे बहुत तरह से समझाया, कुमार ने कोई उपाय न देख कहा “अच्छा, तो मैं फूल तोड़कर (EE) पकड़ लिया"। पहली बालिका भागने का यत्न करने लगी, किंतु दूसरी बालिका ने उसे पकड़ रखा । हँसते हँसते शशांक और माधवगुप्त वहाँ आ पहुँचे । शशांक ने पहले आई हुई बालिका से पूछा भागी क्यों ?" चित्रा ने कुछ उत्तर न दिया । दूसरी बालिका ने कहा "चित्रा रूठ गई है। शशांक-क्यों ? दू० बालिका-तुमने मुझे फूल तोड़ कर देने को कहा इसी लिए। शशांक हंस पड़े। चित्रा का मुँह लजा और क्रोध से लाल हो गया। दूसरी बालिका उसका क्रोध देख सकुच गई और ‘माधव को पुकारकर कहने लगी "चलो कुमार, हम तोड़ने चलें। रूठ क्यों गई?" दूसरी ओर करके रोने लगी। धीरे धीरे किसी प्रकार शशांक ने उसे बात उसके गले के नीचे न उतरी । लोग तुम ने जाकर पर तुम्हीं को दूंगा । लतिका को न दूंगा।' चित्रा के जी में जी आया। .