पृष्ठ:शशांक.djvu/१२०

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1 (१००) फुलवारी में जितने फूल खिले थे, बालक बालिका उन्हें तोड़ तोड़ कर चबूतरे पर रखने लगे। शशांक फूल तोड़ तोड़कर चित्रा की झोली में डालते जाते थे और माधव लतिका को देते जाते थे। इतने में फुल- वारी के द्वार पर से न जाने कौन बोल उठा "अरे ! कुमार यह हैं । इधर आओ इधर"। कुमार ने पूछा “कौन है ?"। उस व्यक्ति ने कहा "प्रभो ! मैं हूँ अनंत । नरसिंह आपको ढूँढ़ रहे हैं"। दो बालक वाटिका का द्वार खोल भीतर आए । इनमें से एक को तो पाठक जानते ही हैं । वह चरणाद्रि के गढ़पति यज्ञवर्मा का पुत्र है। दूसरा बालक चित्रा का बड़ा भाई नरसिंहदत्त है । नरसिंह ने पूछा “कुमार ! यहाँ क्या हो रहा है ?" शशांक ने हँसकर उत्तर दिया “तुम्हारी बहिन की नौकरी बजा रहा हूँ। रोहिताश्वगढ से लतिका आई है। उसे फूल तोड़कर देने जाता था, इसपर यह बहुत रूठ गई। लतिका का संगी माधव है ।" कुमार की बात सुनकर अनंत और नरसिंह जोर से हँस पड़े। चित्रा ने लजाकर सिर नीचा कर लिया । नरसिंह ने कहा "चित्रा, कुमार बड़े होंगे, दस विवाह करेंगे, तब तू क्या करेगी?" बालिका मुँह फेरकर बोली “मैं नहीं करने दूंगी।" सबके सब फिर हँस पड़े। नरसिंह ने फिर कहा “फुलवारी में तो अब एक फूल न रहा; जान पड़ता है, डाल पत्ते भी न रह जायेंगे। दिन इतना चढ़ आया, नदी पर कब चलेंगे। तीन चार घड़ी से कम में तो नहाना होगा नहीं। महादेवी के यहाँ से दो-दो तीन-तीन आदमी आ आकर जब लौट जायँगे, तब जाकर कहीं खाने-पीने की सुध होगी।" उसकी बात पर सब हँस पड़े । कुमार बोले "नरसिंह, हम लोगों की मंडली में तुम सबसे चतुर निकल पड़े।" उनकी बात पूरी भी न हो पाई थी कि एक दासी उद्यान में आई और कुमार को प्रणाम करके बोली "महादेवी जी आप लोगों को स्नान करने के लिए कह रही हैं।” उसकी बात सुनकर नरसिंह हँसा और कहने लगा “देखिए ! मैं झूठ कहता था ?" सब