(१०१) लोग फुलवारी से निकलकर प्रासाद के भीतर गए। आँगन के किनारे एक लंबे डील के वृद्ध टहल रहे थे। लतिका ने उन्हें देखते ही झट उनका हाथ जा पकड़ा। उसके पीछे शशांक और माधव ने भी पास जाकर उन्हें प्रणाम किया। और लोग कुछ दूर खड़े रहे । लंवे डील के वृद्ध रोहिताश्व के गढ़पति यशोधवलदेव थे। यशोधवल ने शशांक के भूरे-भूरे बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा “युवराज ! ये लोग कौन हैं ?" शशांक ने हाथ हिलाकर नरसिंह, अनंत और चित्रा को बुलाया। उन लोगों ने भी पास आकर वृद्ध को प्रणाम किया। शशांक ने उनका परिचय दिया। वृद्ध अनंत और चित्रा को गोद में लेकर न जाने क्या क्या सोचने लगे। वृद्ध सोच रहे थे कि साम्राज्य का अभिजातवर्ग, बड़े-बड़े उच्च वंशों के लोग आश्रय के अभाव से राजधानी में आकर पड़े हैं। साम्राज्य में इस समय सब भिखारी हो रहे हैं, भीख देनेवाला कोई नहीं है। वृद्ध सम्राट ही सबके आश्रय हो रहे हैं । पर वे भी अब बुड्ढे हुए। उनके दोनों पुत्र अभी छोटे हैं, राज्य की रक्षा करने में असमर्थ हैं। चारों ओर प्रबल शत्रु घात लगाए वृद्ध सम्राट् की मृत्यु का आसरा देख रहे हैं । क्या उपाय हो सकता है ? दासी दूर खड़ी गढ़पति को चिंतामन देख बोली "प्रभो ! दिन बहुत चढ़ आया है । महादेवीजी कुमारों को स्नान करने के लिए कह रही है" । वृद्ध ने झट अनंत और चित्रा को गोद से नीचे उतार दिया । सब लड़के प्रणाम करके प्रासाद के भीतर चले गए। वृद्ध फिर चिंता में डूवे ।। वे सोचने लगे “मैं भी अपनी पौत्री का कुछ ठीक ठिकाना लगाने के लिए ही सम्राट के पास आया हूँ। पर यहाँ आकर देखता हूँ कि सबकी दशा एक सी हो रही है। राजकार्य की सारी व्यवस्था बिगड़ गई है । सम्राट् बुड्ढे हो गए, अधिक परिश्रम कर नहीं सकते। बाहरी
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