शत्रु शशांक को वे वहाँ पाते तो इसका उल्लेख बड़े गर्व के साथ होता । शशांक मारे नहीं गए और बहुत दिनों तक राज्य करते रहे इसे सब इतिहासज्ञों ने माना है। विंसेंट स्मिथ अपने इतिहास में लिखते हैं-
The details of the campaign against Sasanka have not been recorped, and it seems clear that he escaped with little loss, He is known to have been still in power as late as the year 619 but his kingdomy probably became subject to Harsha at a later date,
इतिहास में शशांक कट्टर शैव, घोर बौद्धविद्वेषी और विश्वासघाती
प्रसिद्ध हैं । पर यह इतिहास है क्या ? हर्ष के आश्रित वाणभट्ट की आख्यायिका और सीधेसादे पर कट्टर बौद्धयात्री ( हुएन्सांग ) का यात्राविवरण । इस बात का ध्यान और उस समय की स्थिति पर दृष्टि रखते हुए यही कहना पड़ता है कि इस उपन्यास में शशांक जिस रूप में दिखाए गए हैं वह असंगत नहीं है। उपन्यासकार का काम यही है कि वह इतिहास के द्वारा छोड़ी हुई बातों का पी कल्पना द्वारा आरोप करके सजीव चित्र खड़ा करे । बौद्धधर्म वैराग्यप्रधान धर्म था । देश भर में बड़े बड़े संघ स्थापित थे। भारी भारी मठ और विहार थे जिस में बहुत सी भूसंपत्ति लगी हुई थी और उपासक गृहस्थों की भक्ति से धन की कमी नहीं रहती थी। इन विशाल मठों और विहारों में मैकड़ों, सहस्रों भिक्षु बिना कामधधे के भोजन और आनंद करते थे; कहने की आवश्यकता नहीं कि इनमें सच्चे विरागी तो बहुत थोड़े ही
रहते होंगे, शेष आज कल के संडे मुसंडे साधुओं के मेल के होते होंगे। महास्थविर आदि अपने सुदृढ़ विहारों में उसो प्रकार धन जन से प्रबल और संपन्न होकर रहते होंगे जिस प्रकार हनुमानगढ़ी के महंत