पृष्ठ:शशांक.djvu/१३७

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( ११७) “तुम्हें जिस बात का डर था, वह बात नहीं है। वसुमित्र तुम्हारे साथ विवाह करना चाहते थे, इसलिए उनके पिता चारुमित्र ने उन्हें संसार से अलग नहीं किया है। चारुमित्र के मरने पर वसुमित्र ही उनकी अतुल संपत्ति के अधिकारी होते। इसलिए बौद्ध संन्यासियों ने उन्हें वसुमित्र को बौद्ध संन्यासी बना देने का उपदेश दिया । भिक्खु हो जाने पर फिर संपत्ति पर अधिकार नहीं रह जाता, संपत्ति बौद्ध संघ की हो जाती है। बौद्ध संघ की इसी सहायता के लिए ही चारुमित्र ने अपने एकमात्र पुत्र का बलिदान कर दिया है । यूथिका-तो अब उपाय ? तरला-उपाय वही भगवान् हैं। मठ से लौटती बार मैंने बड़ी विनती से भगवान् को पुकारा था। जान पड़ता है, भगवान् ने पुकार सुन ली और मार्ग में ही उन्होंने एक उपाय खड़ा कर दिया। मठ में बहुत से दुष्ट भिक्खु हैं। उनमें एक अधेड़ या बूढा भिक्खु है । वहाँ से लौटते लौटते दिन ढल गया और अँधेरा हो गया । मैं जल्दी जल्दी बढ़ी चली आ रही थी । इतने में मुझे जान पड़ा कि कोई पीछे पीछे आ रहा है । पहले तो मैं बहुत डरी । कई बार अँधेरे में छिप रही कि वह निकल जाय; पर उसने किसी प्रकार पीछा न छोड़ा। घड़ी भर तक मैं आँख मिचौली खेलती रही। अंत में मैंने उसका मुँह देख पाया। देखते ही शरीर में गुदगुदी लगी, मैंने अपने भाग्य को सराहा | मठ का वही बुड्ढा बंदर मेरे पीछे लगा आ रहा था। यूथिका-मुँहजला कहीं का ! तरला-तुम वसुमित्र के मुँह की ओर क्यों ताकती रह जाती थीं, क्यों तुम्हारी पलकें नहीं पड़ती थीं, अब जाकर मुझे समझ पड़ा है। यूथिका ने कोई उत्तर न दिया, धीरे से तरला के गाल पर एक चपत जमाई । तरला कहने लगी “तुम मेरी बात का विश्वास तो