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पृष्ठ:शशांक.djvu/१३९

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(११६ ) जी पूछे तो कह देना कि तरला अपनी मासी की लड़की के ब्याह में कहीं बाहर गई है, पाँच सात दिन में आवेगी। मेरी मौसेरी बहिन का नाम भी यूथिका है।" यूथिका-तेरे मुँह में लगे आग ! तरला-अब इस बार आग नहीं, घी-गुड़ । यही कहकर तरला हँसती हँसती चली गई। अठारहवाँ परिच्छेद देशानंद का अभिसार तरला अपने सेठ के घर से निकलकर राजपथ पर आई और तीन दूकानों पर से उसने पुरुषों के व्यवहार योग्य वस्त्र, उत्तरीय, उष्णीश और एक जोड़ा जूता मोल लिया। इन सब को अपने वस्त्र के नीचे छिपाकर वह अपने घर की ओर गई। नगर के बाहर तरला की मासी की एक झोपड़ी थी, यही तरला का घर था। वह प्रायः रात को सेठ ही के घर रहती थी। बीच बीच में कभी कभी अपने प्रभु से आज्ञा लेकर दो तीन दिन आकर मासी के घर भी रह जाती थी। मासी झगड़ालू थी, इससे वह अधिक दिन उसके यहाँ नहीं ठहरती थी। तरला की मासी में अनेक गुण थे । वह अंधी, बहरी और झगड़ालू थी। घर में आकर उसने सब सामान एक कोठरी में छिपाकर रख दिया और खा पीकर सो रही। तीसरे पहर उठकर वह बड़ी सावधानी ,