पृष्ठ:शशांक.djvu/१६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

(१४३) जो जो बातें मुझ से कही हैं, सब इनके सामने निवेदन करो। परिचय पाते ही दोनों ने कुमार को साष्टांग प्रणाम किया और तरला ने जो जो बातें कही थीं, उन्हें वह फिर कुमार के सामने कह गई । वृद्ध पुरुष ने फिर पूछा “तू किस प्रकार सेठ के लड़के को संघाराम से छुड़ा लाई ?” तरला ने देशानंद के साथ प्रथम परिचय से लेकर उसके स्त्री वेश-धारण तक की सब बातें एक एक करके कह सुनाई। जिस समय उसने कीधिवल की मृत्यु का वृत्तांत कहा, वृद्ध पुरुष का मुंह लाल हो गया और वह चौंककर बोल उठा "क्या कहा ? फिर तो कह" । मंदिर में मूर्चि के पीछे छिपकर तरला जो वृत्तांत बंधुगुप्त के मुँह से सुन चुकी थी, सब ज्यों का त्यों कह गई । उसकी बात पूरी होने पर वृद्ध पुरुष ने एक लंबी साँस भरकर वसुमित्र से पूछा “जो बात यह कहती है, सत्य है ?" वसुमित्र [-सब सत्य है। वृद्ध पुरुष-तुम लोगों को कोई भय नहीं, भिक्खु तुम लोगों का एक बाल तक बाँका नहीं कर सकते। हमारे साथ आओ, हम तुम्हें के स्थान पर पहुँचाए देते हैं। तरला कृतज्ञता प्रकट करती हुई वृद्ध के चरणों पर लोट पड़ी। वसुमित्र के मुँह से कोई बात न निकल सकी, वह रो पड़ा । वृद्ध ने कुमार की ओर दृष्टि फेरी, देखा तो वे क्रोध के मारे काँप रहे थे, अपने को किसी प्रकार सँभाल नहीं सकते थे, खड़े दाँत पीस रहे थे। वृद्ध पुरुष बोले "कुमार !” शशांक-आर्य ! वृद्ध पुरुष-अपने को सँभालो, कोई बात मुँह से न निकालो। युवराज जब अपने मन का वेग'न रोक सके तब रोने लगे । वृद्ध ने उन्हें अपनी गोद में खींचकर शांत किया और कहा “पुत्र ! स्मरण आश्रय