( १६८) तरला उनके साथ रहती थी। इन कई वर्षों के बीच तरला प्रासाद के अंतःपुर में सबको अत्यंत प्रिय हो गई थी। घर के काम काज में चतुर, आलस्यशून्य, हँसमुख तरुणी तरला दासियों में प्रधान होगई थी । वसुमित्र को छुड़ाने के पीछे यशोधवल ने उसे अपने सेठ के घर न जाने दिया। तब से बराबर वह प्रासाद ही में बनी हुई है। श्रेष्ठिपुत्र वसुमित्र, संघाराम से छूटने पर बराबर तन मन से यशोधवलदेव की सेवा में ही रहते हैं । इस समय वे नौसेना के एक प्रधान अध्यक्ष हैं । यशोधवल के आदेशानुसार जल विहार के समय कुमार वसुमित्र को सदा साथ रखते थे। वर्षा के अंत में गंगा बढ़कर करारों से जा लगी है | नावों का बेड़ा तैयार हो चुका है। नौसेना सुशिक्षित हो चुकी है। हेमंत लगते ही वंगदेश पर चढ़ाई होगी । सामान्य सैनिक से लेकर यशोधवल तक उत्सुक होकर जाड़े का आसरा देख रहे थे। वर्षा काल में तो सारा वंगदेश जल में डूबकर महासमुद्र हो जाता था, शरद ऋतु में जल के हट जाने पर सारी भूमि कीचड़ और दलदल से ढकी रहती थी । इससे हेमंत के पहले युद्ध के लिए उस ओर की यात्रा नहीं हो सकती थी। वंगदेश की इसी चढ़ाई पर ही साम्राज्य का भविष्य बहुत कुछ निर्भर था। यही सोचकर यशोधवलदेव बहुत उत्सुक होते हुए भी उपर्युक्त समय की प्रतीक्षा कर रहे हैं। शरत् के प्रारंभ में शुक्ल पक्ष की चाँदनी रात में कुमार शशांक अपने संगी साथियों सहित जल विहार के लिए निकले हैं । नरसिंहदत्त, अनंतवा, माधवगुप्त, चित्रा, लतिका और गंगा के साथ कुमार एक नौका पर चंद्रातप (चंदवा) के नीचे बैठे हैं। चंद्रातप के बाहर तरला, लल्ल. और वसुमित्र बैठे हैं। सैकड़ों गौड़ माझी एक स्वर से गीत गाते हुए नावे छोड़ रहे हैं। उज्ज्वल निखरी हुई चाँदनी
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