धिराज ! युवराज शशांक बहुत देर से खड़े हैं, उन्हें बैठने की आज्ञा हो” । सम्राट सिर नीचा किए ही बोले "पुत्र ! बैठ जाओ। हम लोगों का सर्वनाश हो गया। स्थाण्वीश्वर में तुम्हारी बूआ का परलोकवास हो गया" । समाचार सुनकर युवराज सिर नीचा करके बैठ रहे। बहुत विलंब के उपरांत यशोधवलदेव बोले "महाराजाधिराज ! अब शोक में समय खोना व्यर्थ है । पाटलिपुत्र से थानेश्वर कई दिनों का मार्ग है, पर थानेश्वर की सेना चरणाद्रिगढ़ के पास ही है। प्रभाकरवर्द्धन यदि साम्राज्य परbआक्रमण करना चाहें तो बहुत सहज में कर सकते हैं ।
महाराजाधिराज ! अब शोक परित्याग कीजिए, साम्राज्य की रक्षा का उपाय कीजिए"। सम्राट ने कहा "यशोधवल ! साम्राज्य की रक्षा का तो मुझे कोई उपाय नहीं सूझता। थानेश्वर के साथ युद्ध करने में तो पराजय निश्चय है। बालक और वृद्ध कभी लड़कर विजयी हो सकते हैं ?'
यशो०-उपाय न सूझने पर भी कोई उपाय करना ही होगा। जो अपनी रक्षा का उपाय नहीं करता वह आत्मघाती है।
सम्राट०-महादेवी की मृत्यु के पहले मैं ही क्यों न मर गया ? अपनी आँखों से साम्राज्य का ध्वंस तो न देखता।
रामगुप्त-प्रभो! विलाप करने का कुछ फल नहीं। इस समय जहाँ तक शीघ्र हो सके, चरणाद्रिदुर्ग में सेना भेजनी चाहिए ।
यशो०-रामगुप्त ! सेना के दिन में चरणाद्रिदुर्ग पहुँचेगी ?
राम०-अश्वारोही सेना तो तीन दिन में पहुँच सकती है, किंतु पदातिक सेना दस दिन से कम में नहीं पहुँच सकती।
सम्राट-चरणाद्रिगढ़ कितनी सेना भेजना चाहते हो ?
यशो०-कम से कम दस सहस्र; पाँच सहस्र पदातिक, और पाँच
सहस्त्र अश्वारोही ।