पृष्ठ:शशांक.djvu/१९४

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सम्राट - चरणाद्रिगढ़ गंगा के तट पर है, गढ़ की रक्षा के लिए कुछ नौसेना भी चाहिए।

यशो०-वंगदेश की चढ़ाई के लिए जो नौसेना इकट्ठी की गई है, उसका कुछ अंश भेज देने से कोई विशेष हानि न होगी।

सम्राट-शिविर में कितनी सेना होगी ? हरिगुप्त-पंद्रह सहस्र अश्वारोही, पचीस सहस्र पदातिक और पाँच सहस्र नौसेना।

सम्राट - नई नावे कितनी होंगी ? हरिगुप्त--पाँच सौ से कुछ कम । इनमें से दो सौ के माँझो तो मगधदेश के ही हैं।

सम्राट-वंगदेश में अश्वारोही सेना ले जाना तो व्यर्थ होगा, अतः चरणाद्रिदुर्ग पर दश सहस्र अश्वारोही भेज देने से इधर कोई हानि न होगी। पर नौसेना अधिक नहीं भेजी जा सकती. क्योंकि वंगदेश में नौसेना ही लड़ेगी।

यशो०-प्रभो ! कम से कम दो सहस्र अश्वारोही वंगदेश में भी रहने चाहिएँ, क्योंकि कामरूप के राजा क्या करेंगे, नहीं कहा जा सकता।

सम्राट - तो ठीक है । आठ सहस्र अश्वारोही, पाँच सहस्र पदा- तिक और दो सौ नावें इसी समय चरणाद्रिगढ़ भेज दी जायँ । मगध के माँझियों को वंगयुद्ध में ले जाना व्यर्थ ही होगा। अच्छा, चरणाद्रि- गढ़ सेना लेकर जायगा कौन ?

यशो-०-हरिगुप्त और रामगुप्त को छोड़ और तीसरा कौन जा सकता है ? पर दो में से किसी एक का पाटलिपुत्र में रहना भी आवश्यक है।

सम्राट-~अच्छा तो हरिगुप्त को ही भेजो। सम्राट