पृष्ठ:शशांक.djvu/१९७

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( १७६ ) सम्राट-बहुत अच्छी बात है। अच्छा तो महाधर्माधिकार ही कुमार के साथ जायँगे। हृषीकेश शर्मा सब बातें नहीं सुन सके थे। वे पूछने लगे “यशो- धवल, क्या स्थिर किया ?" यशो०-कुमार माधवगुप्त ही स्थाण्वीश्वर जायँगे । महाधर्माधिकार नारायण शर्मा उनके साथ जायँगे। हृषी०-साधु ! साधु ! किंतु यशोधवलदेव, एक बात तो बताओ। हरिगुप्त तो चरणाद्रि जायँगे, नारायण स्थाण्वीश्वर जाते हैं, रामगुप्त नगर की रक्षा के लिए रहते हैं, मैं वृद्ध हूँ, किसी काम का ही नही हूँ। तुम युद्ध में किसे लेकर जाओगे ? यशो०-प्रभो ! सेनापति का क्या अभाव है ? नरसिंह, माधव, युवराज शशांक यहाँ तक कि अनंतवर्मा भी अब युद्धविद्या में पूर्ण शिक्षित हो चुके हैं । वंगदेश की चढ़ाई में ये ही लोग हमारी पृष्ठरक्षा करेंगे । यदि साम्राज्य को रक्षा होगी, यदि वंगदेश पर अधिकार होगा, तो इन्हीं लोगों के द्वारा । हम लोग अब वृद्ध हुए, कर्मक्षेत्र से अब हम 'लोगों के छुट्टी लेने का समय है। यदि आगे का सब कार्य इन लोगों के हाथ में देकर हम लोग छुट्टी पा जाय तो इससे बुढ़कर भगवान् की कृपा क्या होगी? हृषी -साधु ! यशोधवल, साधु ! आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हारा यह साधु उद्देश्य सफल हो । यशो०-महाराजाधिराज! अब विलंब करने का काम नहीं आज रात को ही सेना सहित हरिगुप्त को प्रस्थान करना होगा । सम्राट-अच्छी बात है । हरिगुप्त ! प्रस्तुत हो जाओ और आज रात को ही सेना सहित नगर परित्याग करो।