पृष्ठ:शशांक.djvu/१९८

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( १८०) हरिगुप्त प्रणाम करके विदा हुए । सम्राट ने विनयसेन को बुलाकर कहा “तुम इसी समय शिविर में जाओ। अंग और तीरभुक्ति की अश्वारोही सेना को आज रात को ही हरिगुप्त के साथ चरणाद्रिगढ़ जाना होगा। आठ सहस्र अश्वारोही और पाँच सहस्र पदातिक दो पहर रात बीते ही प्रस्थान करेंगे, शेष सेना नगर में ही रहेगी। तुम जाकर सेना- नायकों को तैयार होने के लिए कहो।" विनयसेन अभिवादन करके चले गए। सम्राट् ने फिर कहा “रामगुप्त ! जिन दो सौ नावों पर मगध के माँझी हैं वे हरिगुप्त के साथ चरणाद्रि जायँगे, उन्हें तैयार होने के लिए कहो ।" रामगुप्त प्रणाम करके गए। रात का तीसरा पहर बीता चाहता है, यह देख हृषीकेश शर्मा और नारायण शर्मा सम्राट से विदा होकर अपने अपने घर गए । यशोधवलदेव और कुमार शशांक भी बाहर निकल आए । शयोधवलदेव ने कहा “पुत्र मैं शिविर में जा रहा हूँ। तुम भी सेना यात्रा देखने चलोगे ?" युवराज ने कहा "आयं ! मैं बहुत थका हुआ हूँ।" यशो- धवलदेव उन्हें विश्राम करने के लिए कहकर चले गए। उनके आँखों की ओट होते ही चित्रा दौड़ी दौड़ी आई और कुमार के गले लगकर कहने लगी “कुमार ! तो फिर क्या तुम युद्ध में न जाओगे ?" कुमार ने चकित होकर पूछा “क्यों ?" चित्रा-हरिगुप्त न जा रहे हैं । शशांक-तुमने कैसे सुना ? चित्रा-मैं कोठरी के उधर कोने में छिपी छिपी सब सुन रही थी। शशांक-चित्रा ! तुम अभी सोई नहीं ? चित्री-मुझे नींद नहीं आती। तुम भी युद्ध में जाओगे, यह सुनकर मेरा जी न जाने कैसा करता है शशांक-मैं युद्ध में जाऊँगा, यह बात तो तुम बहुत दिनों से सुनती आती हो।