शशांक पहला परिच्छेद सोन के संगम पर हजार वर्ष से ऊपर हुए जब कि पाटलिपुत्र नगर के नीचे सोन की धारा गंगा से मिलती थी। सोन के संगम पर ही एक बहुत बड़ा और पुराना पत्थर का प्रासाद था। उसका अब कोई चिह्न तक नहीं है। सोन की धारा जिस समय हटी उसी समय उसका खंडहर गंगा के गर्भ में विलीन हो गया। वर्षा का आरंभ था। संध्या हा चली थी। प्रासाद की एक खिड़की पर एक बालक और एक वृद्ध खड़े थे । बालक का रंग गोरा था, लंबे- लवे रक्ताम केश उसकी पीठ पर लहराते थे ! संध्या का शीतल समीर रह-रह कर केशपाश के बीच क्रीड़ा करता था । पास में जो बुड्ढा खड़ा था उसे देखते ही यह प्रकट हो जाता था कि वह कोई योद्धा है। उसके लंबे-लंबे सफेद बालों के ऊपर एक नीला चीरा बँधा था. उसके लंबे-चौड़े और गठीले शरीर के ऊपर एक मैली धोती छोड़ और कोई वस्त्र नहीं था । बुड्ढा हाथ में बरछा लिएं चुपचाप लड़के के पास खड़ा था। पाटलिपुत्र के नीचे सोन की मटमैलो धारा गंगा में गिरकर ऊँची-ऊँची तरंगें उठाती थी। वर्षा के कीचड़ मिले जल के कारण गंगा की मटमैली धारा बड़े वेग से समुद्र की ओर बह रही थी। बालक ध्यान लगाए यही देख रहा था । पच्छिमै को जानेवाली नावें धीरे-धीरे किनारा छोड़कर आगे बढ़ रही थीं। सोन के दोनों तटों पर बहुत सी
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