(२०५) देशा .-न, न, भला ऐसा कभी हो सकता है? तरला-देखो, आज राजकुमारी अभिसार को जायँगी। मेरे साथ किसी विश्वासपात्र को चलना चाहिए । बोलो, चलोगे ? देशा०-अकेले? तरला-नहीं, नहीं, मैं साथ रहूँगी । देशा०. 10-तब तो अवश्य चलूँगा। तरला-राजकुमारी को कुंजकानन में पहुँचा कर हम दोनों को लौट आना होगा । समझ गए न ? देशानंद बहुत अच्छी तरह समझ गया, कुछ समझना बाकी न रह गया। उसने हँसते-हँसते तरला का हाथ पकड़ा। तरला हाथ छुड़ा दूर जा खड़ी हुई और बोली, "तो रात को आकर तुम्हें धीरे से बुला ले जाऊँगी, जागते रहना ।” देशानंद बोला “बहुत अच्छा ।" सातवाँ परिच्छेद समुद्रगुप्त का गीत पुराने राजप्रासाद के निचले खंड की एक कोठरी में यदुभट्ट भोजन करके लेटा हुआ है । जान पड़ता है बुड्ढे को झपकी आ गई है क्योंकि यशोधवलदेव कोठरी में आएं और उसे कुछ पता न लगा । यशोधवलदेव ने उसकी चारपाई के पास जाकर ज्योंही नाम लेकर
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