पृष्ठ:शशांक.djvu/२२५

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6- (२०७) यदु०-पूरी पूरी। इतने दिनों तक कोई सुननेवाला ही न था । महाराज के निषेध करने पर भी मैंने कई बार युवराज के बहुत कहने से उन्हें गुप्तवंश की कीर्तिकथा गाकर सुनाई है। कभी कभी मैंने कहानी के बहाने बहुत सी बातें कह सुनाई हैं । पर महाराज इसके लिए भी एक दिन मुझपर बहुत बिगड़े थे। यशो०-वे सब दिन अब गए, यदु ! अच्छा बताओ, कब गाओगे। यदु -आज्ञा हो तो इसी समय सुनाऊँ। यशो०-केवल मुझे सुनाने से नहीं होगा, यदु ! जो लोग अपने जीवन भर में पहले-पहल लड़ाई पर जा रहे हैं उन्हें सुनाना होगा। यदु०-तो फिर जिन्हें-जिन्हें सुनाना हो उन्हें आप इकट्ठा करें । यशोधवलदेव ने ताली बजाई । एक प्रतीहार बाहर खड़ा था, उसने कोठरी में आकर प्रणाम किया। यशोधवल ने नरसिंहदत्त को बुलाने की आज्ञा दी। प्रतीहार के चले जाने पर महानायक ने भट्ट से पूछा “यदु ! तुम अकेले गा सकते हो न ? गंगा तट पर शिविर में चल कर गाना होगा ।” यदु ने आनंद में फूल कर कहा “प्रभु किसी बात की चिंता न करें। यदु के कंठ में अब तक बल है, किसी के सहारे की आवश्यकता नहीं ।" थोड़ी देर में प्रतीहार नरसिंह को साथ लिए आ पहुँचा। नरसिंहदत्त के प्रणाम का उत्तर देकर महाकायक ने पूछा "कुमार कहाँ हैं ? नर०-महादेवी के मंदिर में । यशो०-उनसे जाकर कहो कि अभी इसी समय शिविर में चलना होगा। यात्रा के पहले मंगल गीत सुनना है। आज यदु भट्ट समुद्रगुप्त की विजय यात्रा का गीत गाएँगे; सब लोग तैयार रहें। नर०-हम सब लोग अभी युवराज के साथ शिविर में चलते हैं। 12