पृष्ठ:शशांक.djvu/२२६

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(२०८) नरसिंहदत्त चले गए । महानायक भट्ट से बोले “यदु ! चलो अब हम लोग भी चलें।" यदु भट्ट ने अपना उचरीय लिया और दोनों पुराने प्रासाद से चल कर नए प्रासाद में पहुंचे। तीसरे पहर जब महानायक यशोधवलदेव का रथ गंगा तट पर शिविर के बीच पहुँचा उसके पहले ही युवराज शशांक और उनके साथी वहाँ पहुँच चुके थे। मैदान में सारी अश्वारोही और पदातिक सेना सशस्त्र होकर कई पंक्तियों में खड़ी थी। सब मिला कर बीस सहस्र पदातिक और सात सहस्र अश्वारोही नए-नए अस्त्रशस्त्रों और नए-नए परिधानों से सुसजित आसरे में खड़े थे। गंगा में गौड़ देश के माझियों- वाली तीन सौ नावे दस पंक्तियों में खड़ी थीं। महानायक को देखते ही तीस सहस्र मनुष्यों ने एक स्वर से जयध्वनि की। महानायक यशोधवलदेव और यदु भट्ट रथ पर से उतरे। युवराज की आज्ञा से तीनों सहस्र गौड़ीय नाविक भी नावों पर से उतर कर अलग श्रेणीबद्ध होकर खड़े हुए। रामगुप्त , यशोधवलदेव, युवराज शशांक, कुमार माधव- गुप्त, नरसिंहदत्त, माधववर्मा और अनंतवर्मा इत्यादि नायक सेना दल के बीच में खड़े हुए। वृद्ध भट्ट वीणा लेकर सबके सामने बैठा । वीणा बजने लगी। पहले तो धीरे धीरे, फिर द्रुत, अतिद्रुत झन- कार निकल कर एकबारगी बंद हो गई। फिर झनकार उठी और उसके साथ साथ वृद्ध का गुनगुनाना सुनाई पड़ा। वीणा के साथ गीत का स्वर मिलकर क्रमशः ऊँचा होने लगा। एकत्र जनसमूह चुपचाप खड़ा सुनने लगा। भट्ट गाने लगा। "यह कौन चला है ? आर्यावर्त और दाक्षिणात्य को कंपित करता यह कौन चला है ? सैकड़ों नरपतियों के मुकुटमणि जिसके गुरुडध्वज को अलंकृत कर रहे हैं, ससुद्र से लेकर समुद्र तक, हिमालय से लेकर कुमारिका तक सारा जंबूद्वीपू जिसकी विजयवाहिनी के भार से काँप उठा है वह कौन है ? महाराजाधिराज समुद्रगुप्त" । N