पृष्ठ:शशांक.djvu/२३

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शीर्ष पर एक सुंदर गरुड़ बैठा था जिसकी परछाई नाना अस्त्रशस्त्रों के बीच संगमर्मर की दीवार पर पड़ कर विलक्षण विलक्षण आकार धारण करती थी। बालक ने वृद्ध से कहा “दादा ! मुझे पढ़ना आता है, यह देखो इस दंड पर कई एक नाम लिखे हैं। यह सब क्या आर्य समुद्र- गुप्त लिखा है ?" वृद्ध ने उत्तर दिया 'गरुड़ध्वज पर कुछ लिखा है यह तो मैंने कभी नहीं सुना is बालक कुछ कहना ही चाहता था इतने में एक बालिका झपटी हुई आई और उसके गले से लग . कर हाँफती-हाँफती बोली “कुमार ! माधव मुझसे कहते हैं कि तुम्हारे साथ व्याह करूँगा। मैं उसके पास से भागी आ रही हूँ, वे मुझे पकड़ने आ रहे हैं ।" इतना कह कर वह बालक की गोद में छिपने का यत्न करने लगी। बालक और बृद्ध दोनों एक साथ हँस पड़े। उनकी हँसी की गूंज पुराने प्रासाद के एक कक्ष से दूसरे कक्ष तक फैल गई। इतने में एक और बालक दौड़ता हुआ उस कमरे की ओर आता दिखाई दिया, पर अट्टहास सुन कर वह द्वार ही पर ठिठक रहा। बालिका ने जिसे 'कुमार' कह कर संबोधन किया था उसे देखते ही आने वाले बालक का मुँह उतर गया। पहले बालक ने. इस बात को देखा और वह फिर ठठाकर हँस पड़ा । दूसरा बालक और भी डर कर द्वार की ओर हट गया । बालिका अब तक अपने रक्षक की गोद में मुँह छिपाए थी। दूसरा बालक काला, दुबला-पतला और नाटा था । देखने में वह पाँच बरस से अधिक का नहीं जान पड़ता था, पर था दस बरस से ऊपर का । बालिका अत्यंत सुंदर थी | उसका वयस् आठ वर्ष से अधिक नहीं था। उसका रंग कुंदन सा और अंग गठीले थे। छोटे से मस्तक का बहुत सा भाग काले धुंघराले बालों से ढंका था । पहले बालक ने दूसरे बालक से कहा "माधव ! तू चित्रा से ब्याह करने को कहता था ? चित्रा तो बहुत पहले से स्वयंवरा हो चुकी है।" दूसरा बालक बोला "चित्रा मुझे काला कह कर मुझ से घिन करती है ।