पृष्ठ:शशांक.djvu/२५५

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(२३७ ) सेना नहीं है। आप यदि युवराज को पराजित कर सकें तो चटपट पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर दें। चरणाद्रि के उधर स्थाण्वीश्वर की सेना तैयार है। आशीर्वादक कपोतिक महाविहारीय महास्थविर बुद्धघोष । पत्र पढ़कर कुमार उदास हो गए और चिंता करने लगे। वीरेन्द्रसिंह और नरसिंहदत्त उन्हें समझा बुझाकर शिविर में ले गए। दूसरे दिन युवराज और वीरेंद्रसिंह नरसिंहदत्त को वहीं छोड़ मेघनाद तटस्थ शिविर की ओर लौट पड़े। ग्यारहवाँ परिच्छेद अदृष्ट गणना पाटलिपुट के नए राजभवन के आँगन की फुलवारी में एक पुराना शिवमंदिर था । एक दिन प्रातःकाल मंदिर के बाहर बैठकर एक युवती गीली धोती पहने महादेव की पूजा कर रही थी। युवती तन्वी थी और उसका वर्ण तपाए सोने का सा था। उसके भीगे कपड़े से होकर उसकी गोराई फूटी पड़ती थी। कटि के नीचे तक पहुँचते घने धुंघराले काले भँवर केश हवा के झोंकों से लहरा लहराकर माथे पर से वस्त्र हटा हटा देते थे। युवती एक हाथ से वस्त्र थामे हुए एकाग्रचित्त से पूजा कर रही थी। अर्घ्य, चंदन, पुष्प, विल्वपत्र