पृष्ठ:शशांक.djvu/२५४

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करेगी। ( २३६ ) युवराज पढ़ने लगे- "आशा नहीं है। हमारी सेना शीघ्र चरणाद्रिगढ़ पर आक्रमण माधव आज कल यहाँ आए हैं। देखना, यशोधवल और शशांक लौटकर न जाने पाएँ। मामा के जीते मैं प्रकाश्यरूप शत्रुताचरण नहीं कर सकता । प्रभाकरवर्द्धन" पत्र पढ़ते पढ़ते युवराज शशांक का रंग फीका पड़ गया। यह देख वीरेंद्रसिंह बोले "कुमार ! अभी दो पत्र और है'। युवराज ने बड़ी कठिनता से अपने को सँभालकर दूसरा पत्र हाथ में लिया और पढ़ने लगे- "महाराज ग्रहवा लाख सुवर्ण मुद्राएँ मिली स्थाण्वीश्वर से महाराजाधिराज का एक पत्र आया है। यदि किसी उपाय से शशांक की हत्या करा सके तो युद्ध अभी समाप्त हो जाय । फिर यशोधवल हम लोगों के हाथ से निकलकर नहीं जा सकता। आशीर्वादक महास्थविर बंधुगुप्त" "तो बंधुगुप्त आजकल वंगदेश में है। "अवश्य । यह पत्र महानायक के हाथ में देना चाहिए" "अभी एक अश्वारोही भेजो"। "न। हम लोग अपने साथ ले चलेंगे। और एक पत्र है, देखिए"। युवराज फिर पढ़ने लगे- "इस समय पाटलिपुत्र में दो तीन सहस्र से अधिक सुशिक्षित