पृष्ठ:शशांक.djvu/२५८

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(२४० ) को बलि चढ़ाने के लिए तैयार हूँ। अब मुझे मरने से डर नहीं लगता है । बार बार यही भिक्षा चाहती हूँ कि कुमार शीघ्र घर लौटें"। तरला पीछे से बोल उठी "चित्रादेवी! किसको कुमार कुमार कहकर पुकार रही हो ?" चित्रा चौंककर उठ खड़ी हुई और उसने देखा कि तरला और यूथिका पीछे खड़ी हैं । लजा से दबकर चित्रा भाग खड़ी हुई । उसके पैरों की आहट सुनकर महादेवी ने पूछा "कौन है ?" तरला ने उत्तर दिया "चित्रादेवी हैं"। महादेवी-चित्रा तो बैठी पूजा न कर रही थी, उठकर भागी क्यों ? महा०- तरला-वे पूजा समाप्त करके देवी से कुछ मना रही थीं इतने में हम लोग पहुँच गई। उनका मनाना हम लोगों ने कुछ सुन लिया, इसीपर वे भागीं। -क्यों ? वह क्या मना रही थी ? तरला-वे मना रही थीं कि कुमार यदि कुशलक्षेम से लौट आएँगे तो मैं अपना रक्त चढ़ाकर महाकाली की पूजा करूँगी । तरला की बात सुनकर महादेवी हँस पड़ीं। गंगा, यूथिका आदि भी हँसते हँसते लोट गई। महादेवी की आज्ञा से लतिका चित्रा को हूँ ढ़ने गई । महादेवी ने पूछा “यूथिका कहाँ है ? वह आज मेरे पास नहीं आई"। चित्र की मनौती सुनकर यूथिका की आँखें डबडबा आई थीं । वह अपने प्रिय के ध्यान में मग्न हो रही थी। वह अपनी मनौती की बात मन में सोच रही थी और भीतर ही भीतर अपने प्रिय के मंगल की प्रार्थना कर रही थी । तरला और महादेवी की एक बात भी उसके कान में नहीं पड़ी । हँसी ठट्ठा सुनकर सेठ की बेटी का ध्यान भंग हुआ। महादेवी के फिर पूछने पर यूथिका लजा से दब गई । तरला ने उत्तर दिया “यहीं तो बैठी है। यूथिका ने धीरे से उठकर महादेवी को जाकर प्रणाम किया ।