पृष्ठ:शशांक.djvu/२६७

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(२४६ ) इतने में वाणों से घायल होकर एक और नाविक मारा गया। युद्ध अब प्रायः समाप्त हो चुका था। केवल दो नावें प्राणों पर खेल भिक्खुओं की रक्षा कर रही थीं। युवराज की आज्ञा से सब नावों ने एक साथ उनपर आक्रमण किया। युवराज ने सुना कि दूसरा भिक्खु कह रहा है "शक ! तुम कर क्या रहे हो ?” शक्रसेन बोला “मेरे अंग वश में नहीं हैं, हाथ नहीं उठता है"। सुनते ही दूसरे भिक्खु ने युवराज को ताककर शूल चलाया । पर शूल युवराज को लगा नहीं, । अनंतवर्मा चट दौड़कर आगे हो गए और शूल के आघात से मूच्छित होकर नाव पर गिर पड़े। युवराज की नाव अब भिक्खुओं की नाव के पास पहुंच गई थी, इससे वे अनंत को जाकर देख न सके | हाथ में खड्ग भिक्खु बड़े वेग से युवराज की ओर झपटा। युवराज ने बचाव के लिए अपना परशु उठाया। परशु यदि भिक्खु के सिर पर पड़ता तो वह वहीं ठंढा हो जाता पर एक वर्मधारी सैनिक ने उसे अपने ऊपर रोक लिया। परशु ने वर्म को भेदकर सैनिक का सिर उड़ा दिया। इतने में दूसरे भिक्खु का खडग युवराज के शिरस्त्राण पर पड़ा जिससे वे अचेत होकर मेघनाद के जल में गिर पड़े। उनके गिरने के साथ ही वज्राचार्य जल में धड़ाम से कूद पड़ा । संध्या के पहले ही से ईशान कोण पर बादा घेर रहे थे। जिस समय युवराज अचेत होकर मेघनाद के काले जल में गिरे उसी समय बड़े जोर से आँधी और पानी आया। दोनों पक्ष युद्ध छोड़कर आश्रय हूँढने लगे। शत्रु और मित्र की खोज करने का समय किसी को न लेकर दूसरा मिला।