पृष्ठ:शशांक.djvu/२७३

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। २५५) "अच्छा, तुम इधर आओ। बाबा जी आए हैं। नवीन ने जल्दी जल्दी घाट के ऊपर चढ़कर देखा कि कटहल के एक पेड़ के नीचे कषाय वस्त्र धारण किए एक वृद्ध बैठे हैं । उसने उन्हें भक्तिभाव से प्रणाम किया। वृद्ध ने पूछा "वह कहाँ है ?" नवीन-कौन? वृद्ध-वही तुम्हारा अतिथि । "भव के साथ नाव पर घूमने गया है। "वह कैसा है" "भला चंगा है, "पहले की बातों का उसे कुछ स्मरण है ?" "कुछ भी नहीं। वह ज्यों का त्यों पागल है'। "अच्छी बात है। तो अब मैं जाता हूँ, फिर कभी आऊँगा”। वृद्ध चले गए। जिसने नवीन को पुकारा था वह पूछने लगा "नवीन ! तू क्यों नहीं जाता है ?" नवीन बोला "मुछे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है"। दोनों बैठे बहुत देर तक बातचीत करते रहे। दो घड़ी रात बीते भव गीत गाती गाती पागल को लिए लौटी । नवीन तब तक वहीं बैठा था, पर भव उससे एक बात न बोली। उठकर धीरे धीरे चला गया । वह ---