पृष्ठ:शशांक.djvu/२७२

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( २५४ ) कि नदी के जल में मेरा कुछ खो गया है, यदि मैं जाकर हूँ हूँ तो मिल जायगा; इसी से और अच्छा लगता है। "तब चलो"। "नवीन को बुला लूँ" "क्या करने को ?" "वह तो नित्य जाता है”। “अब न जायगा"। "क्यों ?" "मैं तेरी सब बातों का कहाँ तक उत्तर दूंगी ? चलना हो तो चल"। युवक इच्छा न रहने पर भी उठा। युवती काछा काछकर बालू पर से एक नाव खींचकर जल में ले गई। युवक नाव पर जा बठा। भव दोनों हाथों से डाँड चलाने लगी। नाव धारा की ओर चली। नाव के अदृश्य हो जाने पर आम के कुंजों में से निकलकर नवीन बाहर आया । जब तक नाव दिखाई पड़ती रही तब तक वह किनारे खड़ा रहा । नाव के अदृश्य हो जाने पर वह धीरे धीरे झोपड़े की ओर लौटा। इतने में करार पर से किसी ने पुकारा "नवीन"। नवीन बोला "कहिए"। "भव कहाँ है ?" "नाव पर घूमने गई है"। "तुम नहीं गए ?" "नहीं"। "उसके साथ कौन गया है ?" "पागल"।