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पृष्ठ:शशांक.djvu/२७५

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(२५७) का परामर्श दिया। पर कुमार ने एक न सुनी, उन्होंने अकस्मात् घावा कर दिया।त "तब फिर? तब फिर "बीस नावे और तीन चार सौ सैनिक लेकर युवराज ने सौ से अधिक नावों पर आक्रमण किया। आश्चर्य की बात यह है कि विद्रोही पूर्णरूप से पराजित होकर भागे । युद्ध प्रायः समाप्त हो चुका था। उस समय कुमार ने देखा कि कुछ दूर पर विद्रोहियों की दस बारह नावे जमकर बराबर युद्ध कर रही हैं और किसी प्रकार पराजित नहीं होती हैं। उन्होंने उनपर आक्रमण कर दिया। दोनों पक्ष के बहुत से लोग मरे । विद्याधरनंदी और अनंतवा घायल होकर गिर पड़े। इतने में बड़े जोर से आँधीपानी आया। कौन किधर गया इसका किसी को पता न रहा। तभी से युवराज नहीं मिल रहे हैं। कोई कहता है वे युद्ध में मारे गए, कोई कहता है। जल में डूब गए, जितने मुँह उतनी बातें हैं"। "संवाद सुनकर यशोधवलदेव क्या कहा ?" "पहले तो उन्हें संवाद देने का किसी को साहस ही नहीं होता था । युद्ध के तीन दिन पीछे जब विद्याधरनंदी को चेत हुआ तब वे महानायक से मिले । अनंतवा तब भी अचेत पड़े थे। आज तीन दिन हुए कि यशोधवलदेव ने जल तक नहीं ग्रहण किया और न शिविर के बाहर निकले हैं । वीरेंद्रसिंह, वसुमित्र, माधववर्मा आदि सेना- नायक भी उनसे भेंट नहीं कर सकते हैं । शंकरनद के किनारे नरसिंहदत्त के पास भी संवाद गया है, वे भी आते होंगे"। "भाई, सम्राट सुनेंगे तो उनकी क्या दशा होगी? यशोधवल किस प्रकार अपना मुँह पाटलिपुत्र में दिखाएँगे?" धीरे धीरे संध्या का अँधेरा फैल गया। दोनों सैनिकों के पीछे से न जाने कौन बोल उठा “पाटलिपुत्र में क्या मुँह दिखाऊँगा यही तो १७ 2