(२६१) की तरह रो पड़े और बोले "अंनत ! तुम्हारे युवराज हम सबको छोड़ कर चले गए। जान पड़ता है, अब फिर न आएँगे।" अनंत धीरे-धीरे महानायक की गोद से उठे। एक बार चारों ओर उन्होंने आँख दौड़ाई, फिर बोले “तो अब युवराज नहीं हैं। इसीसे कोई मुझसे युद्ध की ठीक-ठीक बात नहीं कहता था ।" इतने में यशो- धवलदेव बोल उठे “तुम सब लोग पाटलिपुत्र लौट जाओ। मैं यहीं वंग देश में ही रहूँगा।" उनकी बात पूरी भी न हो पाई थी कि अनंत वर्मा गरज कर बोले “महानायक ने क्या कहा ? पाटलिपुत्र लौट जायें ? सम्राट को कौन मुँह दिखाएँगे ? महादेवी के आगे जाकर क्या कहेंगे ? श्यामा के मंदिर में मैं प्रतिज्ञा करके आया था कि जीते जी युवराज का साथ न छोडूंगा । किंतु मैं जीता खड़ा हूँ, और युवराज नहीं हैं । अब कौन मुँह लेकर पाटलिपुत्र जाऊँगा ?" युवक ने झट से तलवार खींच कर अपने मस्तक से लगाई और कहा "मैं खड्ग छूकर कहता हूँ कि जब कभी युवराज लौटेंगे तभी अनंत वर्मा पाटलिपुत्र लौटेगा, बीच में नहीं ।” शपथ कर चुकने पर अनंत वर्मा ने तलवार नीचे की और उस पर पैर रख कर उसके दो खंड कर डाले। इसके उपरांत वे घुटने टेक महानायक के सामने बैठ गए और हाथ जोड़ कर बोले "देव ! मौखरि विद्रोही हो गया है, आप सेनापति हैं वह आपके आदेश का पालन न करेगा। उसे बंदी करने की आज्ञा दीजिए।" अकस्मात् सहस्रों कंठों से जयध्वनि हो उठी। मागध सेना क्षुब्ध होकर अपने शरीर तक की सुध भूल इधर- उधर जय ध्वनि करने लगी, उन्मत्तों के समान एक दूसरे के गले मिलने लगी, और शपथ खाने लगी कि यदि युवराज न आएँगे तो कोई घर लौट कर न जायगा। उस समय एक एक करके माधव वर्मा, वसुमित्र, वीरेंद्र सिंह इत्यादि सेना नायकों ने आगे बढ़ कर कहा “हम सब के सब विद्रोही -
पृष्ठ:शशांक.djvu/२७९
दिखावट