(२६२) हैं, कोई पाटलिपुत्र न लौटेगा।" वृद्ध यशोधवलदेव चुप-उनकी आँखों से लगातार आँसुओं की धारा छूट रही थी। अनंत वर्मा के घाव से तनाव पड़ने के कारण रक्त की धारा बह चली जिससे वे अचेत होकर महानायक के पैरों के पास गिर पड़े। पंद्रहवाँ परिच्छेद धीवर की बेटी नदी के किनारे अमराई की छाया में भव बैठी गीत गा रही है और वही गोरा गोरा पागल युवक उसके पास बैठा मुग्ध होकर सुन रहा है । संध्या होती चली आ रही है । दक्षिण दिशा से शीतल वायु मेघनाद की तरंगों को स्पर्श करती हुई तटदेश को स्निग्ध कर रही है। चारों ओर सन्नाटा छाया हुआ है । ऐसा जान पड़ता है कि सारा संसार उस अप्सराविनिंदित कंठ से निकला हुआ संगीतसुधा पान करने में भूला हुआ गीत थम गया, जगत् के ऊपर से मोहजाल हटा, पेड़ों पर पक्षी बोल उठे। मेघनाद की तरंगें किनारों पर थपेड़े मारने लगीं। युवक चौंक उठा और बोला "बंद क्यों हो गई ?” युवती बोली “गाना पूरा हो गया"। “पूरा क्यों हो गया ?" "इसका तो कोई उत्तर नहीं।
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