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( २६३ ) “अब "क्यों ?" "तू तो बड़ा भारी पागल है”। "भव ! मुझे तुम्हारा गाना बहुत अच्छा लगता है"। "क्या कहते हो ? फिर तो कहो”। "तुम्हारा गाना बहुत मधुर लगा है"। "पागल ! क्या तुम मुझे चाहते हो ?" "चाहता हूँ"। "क्यों ?" "तुम्हारा गाना बहुत मधुर है”। "बस, इसी लिए ?' "क्या जानूँ"। युवती लंबी साँस भरकर उठी। युवक ने चकित होकर पूछा आज क्या और गीत न गाओगी ?” युवती बोली "संध्या हो गई है, अब घर चलें"। "संध्या तो नित्य होती है"। "मैं भी तो नित्य गाती हूँ"। "तुम्हारा गाना सुनने की इच्छा सदा बनी रहती है। युवती कुछ हँसकर बैठ गई और पूछने लगी “पागल ! अच्छा, बताओ तो तुम कौन हो। "मैं पागल हूँ"। "तुम क्या सब दिन से पागल हो ?" ."सब दिन क्या ?" “तुम तो बड़े भारी पागल हो। तुम्हारे ध्यान में क्या पहले की कुछ भी बातें नहीं आती हैं .?"