पृष्ठ:शशांक.djvu/२९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सत्रहवाँ परिच्छेद नवीन का अपराध देखते-देखते पाँच बरस निकल गए। गौर वर्ण युवक धीवर के घर रहते-रहते धीवरों की चाल-ढाल पर चलने लगा। वह अब बड़ी फुरती से नाव खेने लगा, पानी में जाल छोड़ने लगा। उसके जी में डर या शंका का नाम न था इससे माझियों के बीच वह बल और साहस के लिए विख्यात हो गया। पर उसका नाम ज्यों का त्यों रहा, उसमें कुछ फेर-फार न हुआ। सब लोग उसे “पागल" ही कह कर पुकारते थे। दीनानाथ उसे बहुत चाहता था । नवीन को छोड़ धीवरों में वह और सबका प्रेमपात्र हो गया। इन पाँच बरसों के बीच कोई उसकी खोज- खबर लेने न आया । अज्ञातकुलशील युवक धीरे-धीरे माझियों में मिल गया । नवीन ने सेवा-यत्न करके उसे अच्छा किया था अवश्य पर भव का उस पर अनुराग देख वह उससे बहुत जलता था। वह अपने पालन कर्ता दीनानाथ के संकोच से कभी मुँह फोड़ कर कुछ कहता तो न था पर डाह के मारे भीतर ही भीतर जला करता था। बड़े कष्ट से वह अपने हृदय की आग दबाए रहता था, पर वह इस बात को जानता था कि किसी न किसी दिन वह आग भड़क उठेगी जिसमें पड़ कर दीनानाथ का सब कुछ भस्म हो जायगा । एक दिन नवीन ने देखा कि नदी के किनारे एक पेड़ की डाल पर बैठी भव पागल साथ घुलघुल कर बातचीत कर रही है। देखते