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पृष्ठ:शशांक.djvu/२८९

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(२७१) न लौटें माधवगुप्त राजप्रतिनिधि होकर सिंहासन पर बैठे। तुम लोग गरुड़ध्वज छूकर शपथ करो कि जो कुछ मैंने कहा है सबका पालन होगा"। अमात्यों ने एक एक करके गरुड़ध्वज स्पर्श करके शपथ खाई । इसके उपरांत सम्राट ने माधवगुप्त से कहा "माधव ! तुम भी शपथ करो" | माधव गुप्त को इधर उधर करते देख यशोधवलदेव ने कुछ कड़े स्वर से कहा “कुमार ! सम्राट आदेश कर रहे हैं। 1 सम्राट् बोले "शपथ करो कि बड़े भाई के लौट आने पर तुम बिना कुछ कहे सुने झट सिंहासन छोड़ दोगे। शपथ करो कि कभी बड़े भाई के साथ विरोध न करोगे" । माधवगुप्त ने धीमे स्वर से सम्राट के मुँह से निकली हुई बात दोहराई। यशोधवल बोले “महाराजाधिराज ! यशोधवल का एक और अनुरोध है । कुमार इस बात की शपथ खायँ कि वे कभी स्थाप्वीश्वर के आश्रित न होंगे । सम्राट् ने थोड़ा सिर उठाकर कहा "माधव ! शपथ करो"। काँपते हुए हाथों से गरुडध्वज छूकर माधवगुप्त ने शपथ खाई "आप- काल में भी मैं कभी स्थाण्वीश्वर का आश्रय न लूँगा"। इस बात पर मानों भवितव्यता अदृश्य होकर हँस रही थी। सम्राट के आदेश से लोग उन्हें गंगाघाट पर ले गए। तीसरे पहर आत्मीय जनों के बीच, अभिजातवर्ग के सामने सम्राट महासेन- गुप्त ने शरीर छोड़ा।