पृष्ठ:शशांक.djvu/२९२

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19 ( २७४) "झूठ कहता है।" "नहीं, नवीन ! तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ "तो फिर भव को क्यों प्यार करता है ?" "क्या एक को प्यार करके फिर दूसरे को नहीं प्यार करना होता ?" "नहीं।" "मैं तो नहीं जानता ।" "तो फिर मैं तुझे मार डालूँगा ।" "मारोगे क्यों, नवीन ?" नवीन से कोई उत्तर न बन पड़ा, वह बहुत देर तक चुपचाप खड़ा रहा, फिर बोला- "तो फिर तू अस्त्र लेकर आ, मैं तेरे साथ लडूंगा।" "क्यों ?" "हम दोनों में से किसी एक को मरना होगा।" "और दोनों बचे रहें तो ?" "भव को दो आदमी नहीं प्यार कर सकते।" "मैं तुमसे न लड् गा ।" "क्यों ? "तुमने मेरे प्राण बचाए हैं ।" "तो इससे क्या ? मैं तुझे मारूँगा । तू न लड़ेगा ?" "न । तुमने मुझे बचाया क्यों था ?" “यह सब मैं कुछ नहीं जानता । मैं तुझे मारूँगा।" "तो फिर मारो।" नवीन बड़े फेर में पड़ा । मारने को तो उसने कहा, पर उसका हाथ न उठा । वह चुपचाप खड़ा रहा । यह देख पागल बोला- "नवीन ! तुम मुझे मारो, मैं कुछ न कहूँगा।"