पृष्ठ:शशांक.djvu/२९३

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( २७५) "क्यों ?" "तुमने मुझे बचाया है।" "इससे क्या हुआ ?" "न जाने कौन मुझसे कहता है कि तुम्हें नहीं मारना चाहिए।" नवीन और कुछ न कह सका । पागल उसका हाथ थाम कर कहने लगा "नवीन ! भव को प्यार करने से तुम इतना चिढ़ते क्यों हो?" नवीन चुप । होनहार टलता नहीं । उसी समय वन के भीतर से भव ने पुकारा "पागल ! पागल ! कहाँ हो ?” उसके पुकारने में चाह भरी आकुलता टपकती थी। उसे सुनते ही नवीन के हृदय की दबती हुई आग एक- बारगी भड़क उठी । उसने अपने के बहुत सँभालना चाहा, पर रोक न सका। भव ने फिर पुकारा “पागल ! तुम कहाँ हो ?" आग में घी पड़ा। नवीन ने अंकुश उठाकर पागल के सिर पर मारा । युवक पीड़ा से कराइकर भूमि पर गिर पड़ा। नवीन भागा । भव दूर पर थी, पर उसने पागल का कराहना सुना। वह दौड़ी हुई आई और देखा कि पेड़ के नीचे रक्त में सना पागल पड़ा है। वह जोर से चिल्ला कर पागल के ऊपर गिर पड़ी। चिल्लाना सुन झोपड़े से दीनानाथ दौड़ा आया । दोनों ने युवक को चेत में लाने की बड़ी चेष्टा की, पर वह अचेत पड़ा रहा। अंत में वे 'उसे उठा कर झोपड़े में ले गए ।