पृष्ठ:शशांक.djvu/२९६

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(२७८) वसु०-मेघनाद के युद्ध में आप घायल होकर नदी में गिर पड़े। वज्राचार्य शक्रसेन आपको निकाल कर इस धीवर के घर ले आए। वे बीच-बीच में आपको देख जाते थे। बंधुगुप्त ने यह सुन कर उन्हें कारागार में बंद कर दिया। वज्राचार्य कारागार से भाग कर मेरे पास आए ! इस प्रकार आज पाँच बरस पर श्रीमान् का पता लगा। अब तक हम लोग देश लौट कर नहीं गए । केवल महानायक यशोधवलदेव महाराजाधिराज के अंतिम समय- शशांक बोल उठे "अंतिम समय ? क्या पिताजी अब नहीं हैं ?" वसु०-महाराजाधिराज महासेनगुप्त का परलोकवास हो गया । शशांक-वसुमित्र! मरते समय पिताजी को मेरा ध्यान आया था ? पिताजी क्या यह सुन चुके थे कि मैं युद्ध में मारा गया ? वसु०-प्रभु! लोगों के मुँह से सुना है कि महाराजाधिराज ने अंतिम समय में महानायक को पास बुला कर कहा था कि आप जीवित हैं । गणना के अनुसार आपकी आयु अभी बहुत है। महाराज को पूरा विश्वास था कि आप जीते-जागते हैं और लौटेंगे। इसीसे उन्होंने महादेवी जी को सहमरण से रोक लिया । इस वृद्धावस्था में भी महा नायस सारा राजकार्य चला रहे हैं - शशांक-हाय पिताजी। पिता की मृत्यु का संवाद सुन कर शशांक बालकों के समान रोने लगे। थोड़ी देर में शोक का वेग कुछ थमने पर उन्होंने वज्राचार्य शक्रसेन से पूछा "वज्राचार्य ! बंधुगुप्त कहाँ हैं ?" शक्र०-अब तो जहाँ तक समझता हूँ पाटलिपुत्र में होंगे। शशांक-उन्हें मेरा कुछ पता लगा है। शक्र०-मैं तो समझता हूँ, नहीं। पर इतना वे अवश्य जानते हैं कि आप जीवित हैं । इससे दाँव पाकर आपको मारने का विचार है।