( २८० ) नरसिंहदच, समतट में माधववर्मा, वंगदेश में मैं-ये सब के सब इस समय विद्रोही है। मंडला में जमकर अनंतवर्मा ने जंगलियों की सहायता से माधवगुप्त की सेना पर खुल्लमखुल्ला आक्रमण किया है। दक्षिण मगध भी उन्हीं के हाथ में है। मंडला से लेकर रोहिताश्व तक का सारा पहाड़ी प्रदेश उनके अधिकार में है । गौड़ देश में वीरेंद्रसिंह केवल वृद्ध महानायक का मुँह देखककर विद्रोह नहीं कर रहे हैं। राम गुप्त और हरिगुप्त पाटलिपुत्र में पड़े स्थाण्वीश्वर के दास की आज्ञा का पालन कर रहे हैं। शशांक ने चुपचाप सारी बातें सुनीं। बहुत देर पीछे वे बोले "वसुमित्र ! अब क्या करना चाहिए ?" वसु०-पाटलिपुत्र चलिए। "अकेले तुम्हारे साथ ?” "साम्राज्य में बंधुगुप्त और बुद्धघोष को छोड़ ऐसा कोई नहीं है. जो आपका नाम सुनते ही दौड़ा न आएगा। प्रभु ! मैं अभी चारों ओर संवाद भेजता हूँ, एक महीने के भीतर पचास सहस्र पदातिक इकट्ठे हो जायेंगे। “वसुमित्र ! घबराओ न । अभी माधव और नरसिंह के पास संवाद भेजो । माधव को तुरंत सेना लेकर चलने को कहो, और नर- सिंह से कहो, कि वे अपनी सेना लेकर गंगा के किनारे रहें। वीरेंद्र और अनंत के पास संवाद भेजने की आवश्यकता नहीं है। "क्यों श्रीमान् ?" "मुझे विश्वास है कि मेरे लिये वे सदा तैयार होंगे।" "अच्छा तो मैं नाव पर जाता हूँ, आप कपड़े वदलें। वसुमित्र ने तलवार माथे से लगाकर नए सम्राट का अभिवादन किया और वज्राचार्य के साथ नाव पर लौट गए,
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