पृष्ठ:शशांक.djvu/३०२

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पहला परिच्छेद पिंगलकेश अतिथि जाड़े के आरंभ में सूर्योदय के पहले मंडला की विकट घाटी पार करके एक अश्वारोही मंडलादुर्ग के सिंहद्वार के सामने आ खड़ा हुआ। पिपीलिकाश्रेणी के समान बहुत से अश्वारोही और पदातिक उसके पीछे पीछे आते थे । अश्वारोही ने गढ़ के फाटक पर खड़े होकर पुकारा "गढ़ में कोई है ?' परकोटे पर से एक पहरेवाला बोला “तुम कौन हो ?" अश्वारोही ने कहा "हम लोग अतिथि है" । पहरे०-तो यहाँ क्यों आए ? अतिथिशाला में जाओ। अश्वारोही ने हँस कर कहा "हम लोग गढ़ के अतिथि हैं अतिथिशाला में क्या करने जाय ?" पहरेवाले ने चकित होकर कहा "गढ़ का अतिथि तो आज तक मैंने कभी नहीं सुना। यह एक नई बात है। अश्वारोही-तुम गढ़पति से जाकर कहो कि गढ़ के एक अतिथि आए हैं, वे गढ़ के भीतर आना चाहते हैं । पहरे-गढ़पति अभी सो रहे हैं, मैं अभी उनके पास नहीं जा सकता । तुम्हारे पीछे बहुत से लोग दिखाई पड़ते हैं, वे सब क्या तुम्हारे ही साथ हैं ? अश्वारोही-हाँ। पहरे-तो फिर उन्हें यहाँ से हट जाने को कहो, नहीं तो अड न होगा।