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पृष्ठ:शशांक.djvu/३०५

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देव चुपचाप सब अपमान सहते रहे। शशांक के लौटने की आशा दिन दिन उनके चित्त से दूर होती जाती थी। बुद्धघोष, बंधुगुप्त आदि बौद्धसंघ के नेताओं ने खुल्लमखुल्ला ब्राह्मणों पर अत्याचार करना आरंभ किया। उनके अत्याचारों से पाटलिपुत्र के नागरिक एकबारगी घबरा उठे । सैकड़ों देवमंदिरों की संपत्ति छीन ली गई, सहस्रों देवालयों में महादेव और वासुदेव के स्थान पर बुद्ध और बोधिसत्वों की प्रतिमाएँ प्रतिष्ठित हुई। अत्याचार से पीड़ित प्रजा ने वृद्ध महानायक की शरण ली, पर वे उसकी रक्षा न कर सके।

धीरे-धीरे राजकोष भी खाली हो चला। चारों ओर से राजस्व का आना बंद हो गया था। वेतन न पाने के कारण सेना अन्न बिना मरने लगी। धीरे-धीरे अभाव असह्य हो गया और वह सेनानायकों की बात पर कुछ भी ध्यान न दे गाँव पर गाँव लूटने लगी। प्रजा भी अपनी रक्षा के लिए उनसे लड़ने लगी। देश में अराजकता छा गई। यशोधवलदेव कठपुतली बने पाटलिपुत्र में बैठे-बैठे साम्राज्य की यह सब दुर्दशा देखने लगे।

प्रभाकरवर्द्धन के पास संवाद पहुँचा कि मगध में विद्रोह हुआ ही चाहता है । वे तो यह चाहते ही थे। समुद्रगुप्त के वंश के रहते आर्यावर्त में कोई उन्हें चक्रवर्ती राजा नहीं मानता था। इसी लिए वे अपने ममेरे भाई की सम्राट् पदवी लुप्त करने की युक्ति निकाल रहे थे। प्रभा-करवर्द्धन मगध की अवस्था सुन कर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने सोचा कि घर की लड़ाई से जब मगध राज्य निर्बल हो जायगा, पराजित होकर जब माधवगुत आश्रय चाहेंगे उस समय मैं उन्हें करद सामंत राजा बना कर गुप्त वंश से सम्राट की पदवी सदा के लिए दूर कर दूंगा । मगध की जिस समय यह दशा हो रही थी ठीक उसी समय शशांक वंग देश से मगध को लौटे ।