पृष्ठ:शशांक.djvu/३०६

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मंडलागढ़ में नए सम्राट ने मंत्रणासभा बुला कर स्थिर किया कि यशोधवलदेव को बिना जताए पाटलिपुत्र में घुसना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो नगर पर आक्रमण करना चाहिए। अनंतवर्मा ने सूचित किया कि अगहन शुक्ल त्रयोदशी को माधवगुप्त का विवाह है। नरसिंहदत्त और माधववर्मा की सम्मति हुई कि उसी दिन पाटलिपुत्र पर आक्रमण करना चाहिए। शशांक ने सोचा कि पाटलिपुत्र में ऐसा ही कोई वर्णाश्रमधर्मी होगा जो मेरे विरुद्ध अस्त्र उठाएगा। उन्होंने उनकी बात काट कर स्थिर किया कि गुप्त वेश में अपने को वीरेंद्रसिंह के साथ आए हुए गौड़ीय सामंत बतला कर सब लोग नगर में प्रवेश करें और नरसिंहदत्त अधिकांश सेना लेकर नगर के बाहर रहें। केवल दस सहस्र सेना उत्सव में सम्मिलित होने के लिए नगर में प्रवेश करे ।

वीरेंद्रसिंह ने गौड़ से यशोधवलदेव को सूचना दे दी थी कि मैं शीघ्र पाटलिपुत्र आऊँगा इससे उनके आने पर किसी को कुछ आश्चर्य न हुआ। दस सहस्त्र सेना देख कर भी किसी को कुछ संदेह न हुआ। बात यह थी कि सम्राट के विवाह के उपलक्ष में निमंत्रित भूस्वामी और सामंत लोग अपने दल बल के साथ नगर में आ रहे थे। दस सहस्र सेना एक पक्ष के भीतर नगर में पहुँच गई । अधिकांश सेना नगर के बाहर आस-पास के गाँवों में इधर-उधर छिप रही।

माधवगुप्त उस समय मन का खटका छोड़ उत्सव और नाच रंग में डूबे थे। किसी विघ्न या विपत्ति की आशंका उनके मन में नहीं थी। वे जानते थे कि किसी प्रकार की लड़ाई भिड़ाई होने पर प्रभाकर-वर्द्धन मेरी रक्षा करेंगे । प्रजा यदि बिगड़ जायगी तो वे पूरी सहायता देंगे और यदि आवश्यक होगा तो स्वयं लड़ने के लिए आएँगे।

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