(३१३ ) रक्तांबरधारी भिक्खु गर्भगृह के द्वार पर आसन जमाए किवाड़ की ओर कान लगाए उन दोनों की बातचीत सुनता था। सुरंग बोधिद्रुम और वज्रासन के नीचे नीचे गया है इतना भर उसने सुन पाया। इसके अनंतर वह बहुत देर तक बैठा रहा, पर और कोई शब्द उसे सुनाई न पड़ा। वह धीरे धीरे लोहे की सीढ़ी के सहारे मंदिर के ऊँचे शिखर पर चढ़ गया। वहाँ से उसने देखा कि दूर पर निरंजना नदी के किनारे किनारे बहुत सी अश्वारोही सेना घटा के समान उड़ती महाबोधि विहार की ओर दौड़ो चली आ रही है । यह देख वह मंदिर के शिखर पर से उतरा । उतर कर उसने देखा कि गर्भगृह का द्वार खुला है और वहाँ सन्नाटा है। वह विहार से निकलकर राजपथ पर जा खड़ा हुआ। सुरंग का मार्ग पकड़े हुए जिनेंद्रबुद्धि बंधुगुप्त के साथ नीचे उतरे । जहाँ सुरंग का अंत हुआ वहाँ लोहे का एक छोटा सा द्वार दिखाई पड़ा। उन्होंने बंधुगुप्त को उसके खोलने का ढंग बताकर कहा "आप बेखटके यहाँ छिपे रहें। महाबोधिविहार के अध्यक्ष के अतिरिक्त और किसीको इस : .... पता नहीं है। यदि किसी प्रकार किसीको इस सुरंग का पता लर, जाय, और कोई हूँढ़ता हूँढ़ता यहाँ तक आने लगे तो आप'चट यह लोहे का किवाड़ खोलकर आगे निकल जाइएगा। निरंजना के उस पार आप निकलेंगे। वहाँ बीहड़ बन में होते हुए आप कुक्कुटपादगिरि पर चले जाइएगा।" जिनेंद्रबुद्धि ने ऊपर आफर गुप्त द्वार बंद कर दिया और गर्भगृह के बाहर आकर उन्होंने देखा कि वहाँ कोई नहीं है । वे फिर आकर बोधिद्रुम के नीचे आसन जमाकर बैठ गए। आधा दंड बीतते बीतते कई सहस्र अश्वारोही सेना ने आकर महा- बोधिविहार और संघाराम को घेर लिया । सम्राट् शशांक और यशो-
- कुवकुटपादगिरि = गुरपा पहाइ ।