पृष्ठ:शशांक.djvu/३४६

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नवाँ परिच्छेद प्रतिष्ठान का युद्ध जिस स्थान पर कालिंदी का श्यामल जल भागीरथी के मटमैले जल के साथ मिलता था-जहाँ गंगा और जमुना का संगम था- वहीं पर प्राचीन काल में प्रतिष्ठान का दुर्ग स्थित था । अब भी गंगा के किनारे प्रतिष्ठान के पुराने दुर्ग% का भारी दूह दिखाई पड़ता है । यह दुर्ग अत्यंत प्राचीन था-न जाने कब से यह पुराना दुर्ग अंतर्वेद की रक्षा का एक प्रधान अड्डा गिना जाता था। प्राचीन गुप्त-राजवंश के समय में भी प्रतिष्ठान दुर्ग आर्यावर्त्त के प्रधान दुर्गों में से था। चौदहे शताब्दी पूर्व अगहन के महीने में एक सेना-दल प्रतिष्ठान दुर्ग को घेर रहा था। दुर्ग के तीन और दूर तक डेरे पड़े हुए थे। उनके बीच जो सब से बड़ा डेरा था उसके ऊपर सोने का गरुडध्वज निकलते हुए सूर्य की किरनों से अग्नि के समान दमक रहा था । उस सब से बड़े शिविर के सामने काठ की एक चौकी पर एक युवा पुरुष बैठा है। उसके सामने सैनिकों से घिरे हुए दो और युवक खड़े हैं | पड़ाव के चारों ओर सेना दुर्ग के आक्रमण की तैयारी कर रही है। पहला युवक कह रहा है "माधव ! तुम महासेनगुप्त के पुत्र और दामो- दरगुप्त के पौत्र हो; तुमने प्रभाकरवर्द्धन की अधीनता कैसे स्वीकार की, समझ में नहीं आता। यदि तुमसे भूल हुई तो कोई बात नहीं, अब ,

  • प्रयाग के उस पार मूंसी में इस दुर्ग का दूह अब तक है । मंगा के इस पार

जो दुर्ग है वह अकबर का बनवाया टुया है।