(१५) बालक को पीठ पर लादे हुए गदहा बहुत दूर तक न जा सका। आधकास के लगभग जाकर वह एक ताड़ के पेड़ के नीचे रुक गया। बालक कुछ देर तक तो व्याकुल होकर रोता रहा, पर धीरे धीरे उसका शरीर ढीला पड़ने लगा और वह गदहे की पीठ पर ही सो गया। दूसरे दिन सबेरे बालक के रोने का शब्द एक तेली के कान में पड़ा । वह एक पगडंडी से हाकर सौदा बेचने के लिये नगर की ओर जा रहा था । उसे दया आई और उसने लड़के और गदहे दोनों को अपने साथ ले लिया। दोपहर होने पर जिस समय नगर के तोरणों पर मंगल- वाद्य हो रहा था लड़के को लिए हुए तेली पाटलिपुत्र के पश्चिम तोरण से होकर घुसा। तोरण का बाहरी फाटक खोलकर प्रतीहार दूसरे फाटक पर बैठे ऊँघ रहे थे । तेली को उन्हें पुकारने का साहस न हुआ। वह बालक के साथ कुछ दूर पर बैठा रहा। द्वारपालों ने उसकी ओर आँख उठाकर देखा तक नहीं। दोपहर बीतने पर रथ के पहिये की घरघराहट सुनकर उनकी नींद टूटी। रथ नगर के भीतर से आकर फाटक के पास पहुँचा । भीतर से एक व्यक्ति ने डाँटकर फाटक खोलने के लिये कहा ! पहरे वाले घबराकर चारपाई से उठ खड़े हुए। एक उनमें से तब भी पड़ा खर्राटा ले रहा था। उसके पास जाकर एकने एक लात जमाई । वह आँख मलकर उठ बैठा और उससे भिड़ने के लिये तैयार हो गया । एक तीसरे ने आकर चारपाई सहित उसे एक कोठरी में डाल दिया। पहरेवालों में से एक कुछ दूर पर बैठा नीम की दतवन दाँतों पर रगड़ रहा था, और बीच बीच में खखार खखार कर थूकता जाता था। उसने वहीं से पूछा-"क्यों रे कौन आया है ?" । एकने उत्तर दिया "तेरा बाप"। उसने कहा “मेरे बाप को तो यहाँ से गए न जाने कितने दिन हुए” और फिर निश्चिंत होकर दतवन करने लगा । यह देखकर एकने उसका लोटा उठा कर खाई में डाल दिया। वह अपना
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